टीबी वैक्सीन विकास पर केन्द्रित नई परिषद, लाखों ज़िन्दगियों की रक्षा की आशा
वैश्विक महामारी कोविड-19 के बाद टीबी, दूसरी सबसे घातक संक्रामक बीमारी है, और विश्व भर में मौतों की 13वीं सबसे बड़ी वजह है.
महानिदेशक घेबरेयेसस ने मंगलवार को स्विट्ज़रलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक मंच की बैठक के दौरान एक उच्चस्तरीय पैनल में, ‘टीबी वैक्सीन ऐक्सीलरेटर’ परिषद स्थापित किए जाने की घोषणा की.
उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि कोविड-19 महामारी का एक बड़ा सबक़ ये है कि नवाचारी स्वास्थ्य कार्यक्रमों को यदि राजनैतिक प्राथमिकता और पर्याप्त वित्त पोषण प्राप्त हो, तो उन्हें तेज़ी से लागू किया जा सकता है.
यूएन एजेंसी प्रमुख ने ध्यान दिलाया कि पिछली एक सदी में टीबी के लिए किसी भी वैक्सीन को लाइसेंस नहीं मिला है, जबकि मानव स्वास्थ्य पर इस बीमारी का गहरा असर होता है.
“टीबी और कोविड-19 से उपजी चुनौतियाँ भिन्न हैं, मगर जिन क़दमों से विज्ञान, शोध और नवाचार में तेज़ी आती हो, वो एक समान ही हैं.”
“तत्काल, सीधे सार्वजनिक निवेश; परोपकारी समर्थन; और निजी सैक्टर व समुदायों से सम्पर्क व बातचीत.”
महानिदेशक घेबरेयेसस ने कहा कि यह हमारा विश्वास है कि टीबी के क्षेत्र में भी इस प्रकार के उच्चस्तरीय समन्वय से लाभ होगा.
टीबी की विकराल चुनौती
टीबी पर केन्द्रित इस नई परिषद के ज़रिये वित्त पोषकों, वैश्विक एजेंसियों, सरकारों और तपेदिक के मरीज़ों को एक साथ लाने की मंशा है.
बताया गया है कि इससे वैक्सीन विकसित करने के रास्ते में आने वाले अवरोधों की पहचान करना और उन्हें दूर कर पाना सम्भव होगा.
टीबी रोग एक जीवाणु (bacteria) की वजह से होता है, जिससे मुख्यत: फेफड़े प्रभावित होते हैं. यह टीबी संक्रमित के खाँसने, छींकने या थूकने से हवा के ज़रिये फैलता है.
इस बीमारी का उपचार और रोकथाम सम्भव है, मगर वर्ष 2030 तक इस बीमारी का अन्त करने के वैश्विक संकल्पों के बावजूद, अभी इस बीमारी के मामलों में कमी आने के संकेत नहीं हैं.
वर्ष 2021 में, एक करोड़ से अधिक लोग तपेदिक संक्रमण का शिकार हुए और 16 लाख लोगों की मौत हुई.
दवा के विरुद्ध प्रतिरोध एक बड़ी समस्या है, और लगभग पाँच लाख लोगों में हर साल दवाओं के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता पनप रही है.
एकमात्र वैक्सीन
फ़िलहाल, टीबी वैक्सीन के रूप में Bacillus Calmette-Guérin/BCG को ही लाइसेंस प्राप्त है, जिसे 1921 में विकसित किया गया था.
बीसीजी टीके की मदद से नवजात शिशु और छोटे बच्चों में टीबी के गम्भीर रूप की रोकथाम करने में कुछ हद तक सफलता मिलती है.
लेकिन, किशोरों और वयस्कों के लिए यह पर्याप्त रक्षा कवच नहीं है, जिनमें विश्व भर में टीबी संचारण के लगभग 90 फ़ीसदी मामले सामने आते हैं.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने हाल ही में टीबी वैक्सीन में निवेश पर केन्द्रित एक अध्ययन कराया, जो बताता है कि 25 वर्षों की अवधि में 50 फ़ीसदी प्रभावी वैक्सीन के ज़रिये, युवजन और वयस्कों में सात करोड़ 60 लाख तपेदिक मामलों की रोकथाम की जा सकती है.
जीवनरक्षा सम्भव
इसके अलावा, 50 फ़ीसदी कारगर वैक्सीन में प्रति एक डॉलर निवेश करने पर, स्वास्थ्य ख़र्चों में कुल 7 डॉलर की बचत और उत्पादकता में वृद्धि सम्भव है.
साथ ही, 85 लाख ज़िन्दगियों की रक्षा की जा सकती है और टीबी प्रभावित घर-परिवारों में ख़र्चों में साढ़े छह अरब डॉलर की बचत हो सकती है, विशेष रूप से निर्धनतम और सर्वाधिक निर्बल समुदायों में.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 75 प्रतिशत प्रभावी वैक्सीन की मदद से टीबी संक्रमण के 11 करोड़ नए मामलों और एक करोड़ 23 लाख मौतों को टालना सम्भव हो सकता है.
इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र की एक उच्चस्तरीय बैठक होनी है, जिसमें देश वर्ष 2018 में पारित एक राजनैतिक घोषणापत्र में लिए गए संकल्पों की दिशा में हुई प्रगति की समीक्षा करेंगे.
संगठन ने वायरस पर जवाबी कार्रवाई और अतीत में मिली विफलताओं के नज़रिये से, इसे एक अहम अवसर क़रार दिया है, जिससे नई तरह की टीबी वैक्सीन को विकसित करने और उनके वितरण को प्रोत्साहन दिया जा सकता है.