शिक्षा में रूपान्तरकारी बदलाव के लिए सकंल्प, ज़मीनी स्तर पर लागू करने होंगे
यूएन प्रमुख ने सभी देशों से शिक्षा प्रणालियों में ऐसे उपाय सुनिश्चित किए जाने की मांग की है, जिनसे समानतापूर्ण समाजों, गतिशील अर्थव्यवस्थाओं और हर व्यक्ति के लिए, असीमित सपनों को समर्थन प्रदान किया जा सके.
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) के आँकड़े दर्शाते हैं कि इस वर्ष 24 करोड़ 40 लाख लड़के-लड़कियाँ स्कूल से बाहर हैं.
इसके अतिरिक्त, निम्न- और मध्य-आय वाले देशों में, 10 वर्ष आयु के 70 प्रतिशत से अधिक बच्चे, सरल लिखाई को पढ़ने और समझने में असमर्थ हैं.
इस वर्ष अन्तरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर आम लोगों में निवेश करने और शिक्षा को प्राथमिकता दिए जाने पर बल दिया गया है.
इस क्रम में, अफ़ग़ानिस्तान में लड़कियों व महिलाओं पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया गया है, जहाँ उन्हें माध्यमिक स्कूलों और यूनिवर्सिटी में शिक्षा हासिल करने से रोका गया है.
अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर तालेबान का नियंत्रण स्थापित होने के बाद से, देश में लड़कियों व महिलाओं के अधिकारों के लिए संकट बढ़ा है.
यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने ज़ोर देकर कहा कि शिक्षा एक बुनियादी मानवाधिकार है, और समाजों, अर्थव्यवस्थाओं व हर एक व्यक्ति में निहित सम्भावनाओं की आधारशिला है. मगर, पर्याप्त निवेश के अभाव में यह सम्भावना दरक सकती है.
महासचिव गुटेरेश ने हैरानी जताई कि अनेक देशों की सरकारों की नीतियों और अन्तरराष्ट्रीय सहयोग उपायों में शिक्षा को निम्न प्राथमिकता दी गई है.
कक्षाओं की नए सिरे से परिकल्पना
यूएन प्रमुख ने ध्यान दिलाया कि सितम्बर 2022 में न्यूयॉर्क में एक शिखर बैठक आयोजित की गई, जिसका उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र में कायापलट कर देने वाले बदलाव सुनिश्चित करना था.
साथ ही, इस दौरान शिक्षा व्यवस्थाओं में नए सिरे से बदलावों की कल्पना की गई, ताकि हर एक छात्र के लिए, सफलता हेतु आवश्यक ज्ञान व कौशल सुलभ बनाया जा सके.
130 से अधिक देशों ने सार्वभौमिक गुणवत्ता शिक्षा को सार्वजनिक नीतियों व निवेशों में एक बुनियादी स्तम्भ बनाने के लिए संकल्प लिए.
इस बैठक के फलस्वरूप, शैक्षिक निवेश के लिए कार्रवाई की पुकार जारी की गई, और शिक्षा के लिए अन्तरराष्ट्रीय वित्त पोषण केन्द्र स्थापित किया गया.
भेदभावपूर्ण क़ानूनों का अन्त हो
यूएन प्रमुख ने कहा कि यह समय सभी देशों के लिए, शिखर बैठक में लिए गए संकल्पों को ठोस कार्रवाई में तब्दील करने का है, ताकि सभी छात्रों के लिए सामर्थ्यवान व समावेशी माहौल सृजित किया जा सके.
इसके साथ ही, उन सभी भेदभावपूर्ण क़ानूनों व तौर-तरीक़ों का अन्त किए जाने का समय है, जिनसे शिक्षा सुलभता के मार्ग में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं.
महासचिव गुटेरेश ने अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान प्रशासन से आग्रह किया कि लड़कियों के लिए माध्यमिक व उच्चतर शिक्षा की सुलभता पर लगाई गई पाबन्दी को पलटा जाना होगा.
मानव गरिमा पर गम्भीर हमला
यूनेस्को ने इस वर्ष, अन्तरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस को अफ़ग़ानिस्तान में सभी लड़कियों व महिलाओं के लिए समर्पित किया है, जिनके शिक्षा प्राप्ति व शिक्षण के अधिकार को नकार दिया गया है.
यूनेस्को की महानिदेशिका ऑड्री अज़ूले ने अपने वक्तव्य में कहा कि उनका संगठन मानव गरिमा व शिक्षा के बुनियादी अधिकार पर इस गम्भीर हमले की निन्दा करता है.
देश में स्कूली उम्र की 80 प्रतिशत, यानि लगभग 25 लाख अफ़ग़ान लड़कियाँ व युवा महिलाएँ, स्कूल से बाहर हैं.
ऑड्री अज़ूले ने कहा कि यूनेस्को ने अफ़ग़ानिस्तान में स्थानीय समुदायों के साथ नज़दीकी सम्पर्क और अपना कामकाज जारी रखा हुआ है, ताकि पाठ्यक्रम या रेडियो के ज़रिये शिक्षा को जारी रखा जा सके.
संयुक्त राष्ट्र की अन्य एजेंसियों व वरिष्ठ अधिकारियों ने भी शिक्षा के सार्वभौमिक अधिकार को पुष्ट करने के लिए अपना समर्थन दिया है.
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने ट्विटर पर अपने सन्देश में सभी देशों से हर किसी को शिक्षा प्राप्ति का अवसर मुहैया कराने की अपील की है.

हेलमन्द प्रान्त में यूनीसेफ़-समर्थित एक स्कूल में छात्राएँ. (फ़ाइल)
‘महिलाओं व लड़कियों को पढ़ने दें’
मानवीय राहत मामलों में संयोजन के लिए यूएन कार्यालय (UNOCHA) ने बताया है कि संकट प्रभावित 20 करोड़ से अधिक बच्चे व किशोर, या तो स्कूल से बाहर हैं या फिर पढ़ाई-लिखाई नहीं कर पा रहे हैं.
यूएन एजेंसी ने अपने एक ट्वीट सन्देश में रेखांकित किया कि संकटों के दौरान, शिक्षा को प्राथमिकता दी जानी होगी, ताकि कोई भी पीछे ना छूटने पाए.
यूएन कार्यालय के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान में लड़कियों व महिलाओं का स्थान स्कूलों में है, और उन्हें शिक्षा हासिल करने देना होगा.
संगठन के शीर्ष अधिकारी मार्टिन ग्रिफ़िथ्स फ़िलहाल, यूएन के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों व ग़ैर-सरकारी संगठनों के प्रमुखों के साथ अफ़ग़ानिस्तान दौरे पर हैं.
उनकी इस यात्रा का उद्देश्य, पिछले महीने स्थानीय व अन्तरराष्ट्रीय मानवीय सहायता संगठनों में तालेबान द्वारा, महिलाओं के कामकाज पर लगाई गई पाबन्दी से उपजी स्थिति की समीक्षा करना है.
तालेबान की इस घोषणा के बाद बताया गया है कि कुछ सहायता अभियान स्थगित करने पड़े हैं, और देश में मानवीय संकट की स्थिति बद से बदतर होने की आशंका बढ़ी है.
इस वर्ष देश की क़रीब दो-तिहाई आबादी, यानि दो करोड़ 80 लाख से अधिक लोगों को, तत्काल मानवीय राहत सहायता की आवश्यकता होगी.