गर्भावस्था या प्रसव के दौरान, हर दो मिनट में एक महिला की मौत


वर्ष 2020 में प्रति एक लाख जीवित जन्म पर 223 मातृत्व मौतें हुईं, जोकि 2015 में 227 और 2000 में 339 के आँकड़े से मामूली कमी को दर्शाता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया कि गर्भावस्था या प्रसव के दौरान होने वाली मौतों में अधिकाँश मामलों की रोकथाम सम्भव है, मगर यदि इसमें कमी लाने के प्रयासों में प्रगति नहीं हुई तो वर्ष 2030 तक 10 लाख से अधिक अतिरिक्त महिलाओं के जीवन के लिए जोखिम पैदा हो सकता है.

संगठन के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा, “यह स्तब्धकारी है कि विश्व भर में लाखों के लिए गर्भावस्था…अब भी त्रासदीपूर्ण ढंग से एक ख़तरनाक अनुभव है, जिनके पास उच्च गुणवत्ता, सम्मानजनक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच नहीं है.”

यूएन एजेंसी प्रमुख ने विभिन्न क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल सुलभता में पसरी विसंगतियों की ओर ध्यान आकर्षित किया और ज़ोर देकर कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना होगा कि शिशु जन्म, प्रसव के दौरान और उससे पहले, महिलाओं व लड़कियों के लिए महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध हों.

उन्होंने कहा कि अपने प्रजनन अधिकारों के पूर्ण उपयोग के लिए इन सेवाओं को सुनिश्चित किया जाना अहम है.

दुनिया धीरे-धीरे कोविड-19 महामारी की छाया से उबर रही है, और शोध दर्शाता है कि कोरोनावायरस के कारण गर्भावस्था के दौरान जोखिम बढ़ सकता है.

विशेषज्ञों ने बताया कि मातृत्व मौतों पर इस वैश्विक स्वास्थ्य आपदा के वास्तविक के पूर्ण आकलन के लिए और अधिक शोध प्रयासों की आवश्यकता है.

धीमी प्रगति

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी की रिपोर्ट, Trends in Maternal Mortality, में वर्ष 2000 से 2020 के दौरान राष्ट्रीय, क्षेत्रीय व वैश्विक स्तर पर मातृत्व मौतों के विषय में जानकारी जुटाई गई है.

रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 2020 में दो लाख 87 हज़ार मातृत्व मौतें हुईं, जोकि 2016 में तीन लाख 9 हज़ार के आँकड़े से मामूली गिरावट दर्शाती हैं.

संगठन के अनुसार, देशों द्वारा 2015 में टिकाऊ विकास लक्ष्यों के एजेंडा को लागू किए जाने के संकल्पों के बावजूद ऐसा हुआ, जिसमें 2030 तक प्रति एक लाख जीवित जन्म पर 70 से कम मातृत्व मौतों का लक्ष्य रखा गया है.

रिपोर्ट में 2000 से 2015 के दौरान, मातृत्व मौतों में कमी लाने के लिए कुछ ठोस प्रगति दर्ज किए जाने के संकेत दर्शाए गए हैं, मगर बड़ी प्रगति फ़िलहाल अटकी हुई है और कुछ मामलों में इसकी दिशा भी पलटी है.

अनुचित हालात

27 करोड़ महिलाओं के पास परिवार नियोजन के लिए आधुनिक उपायों तक पहुँच नहीं है. विशेषज्ञों का कहना है कि आय, शिक्षा, नस्ल, जातीयता पर पसरी विषमताओं के कारण, हाशिए पर रह रही महिलाओं के लिए जोखिम बढ़ जाते हैं.

इन महिलाओं के पास अति-आवश्यक मातृत्व देखभाल सबसे कम सुलभ होती है, जबकि गर्भावस्था के दौरान पहले से स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करने की आशंका उनके लिए सबसे अधिक होती है.

इस रिपोर्ट को यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने, यूएन मातृत्व मृत्यु अनुमान, अन्तर-एजेंसी समूह की ओर से तैयार किया है, जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूएन जनसंख्या कोष, विश्व बैन्क समूह, और आर्थिक व सामाजिक मामलों के लिए यूएन कार्यालय की जनसंख्या शाखा है.

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की कार्यकारी निदेशक डॉक्टर नतालिया कानेम ने चिन्ता व्यक्त की है कि गर्भावस्था और शिशु जन्म के दौरान बड़ी संख्या में महिलाओं की मौत होना अब भी जारी है.

उन्होंने क्षोभ प्रकट करते हुए का एक वर्ष में दो लाख 80 हज़ार से अधिक मौतों की स्थिति नितान्त अनुचित है.

“हम बेहतर कर सकते हैं और हमें करना होगा. परिवार नियोजन में तत्काल निवेश करके और नौ लाख से अधिक दाइयों की वैश्विक क़िल्लत को पूरा करके, ताकि हर महिला को जीवनरक्षक देखभाल मिले, जिसकी उन्हें ज़रूरत है.”

“हमारे पास इन टाली जा सकने वाली मातृत्व मौतों का अन्त करने के लिए उपकरण, ज्ञान व संसाधन मौजूद हैं, अब हमें राजनैतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है.”

काबुल के मलालाई मातृत्व अस्पताल में, मुख्य दाई एक नवजात शिशु की देखभाल करते हुए.

हिंसक टकराव व निर्धनता: एक घातक स्थिति

रिपोर्ट का एक अहम निष्कर्ष है कि मातृत्व मौतें मुख्यत: विश्व के सर्वाधिक निर्धन देशों और हिंसक टकराव से ग्रस्त देशों में होती हैं.

वर्ष 2020 में कुल मातृत्व मौतों में से 70 प्रतिशत सब-सहारा अफ़्रीका में हुईं. वहीं, गम्भीर मानवीय संकटों का सामना कर रहे 9 देशों में, मातृ मृत्यु दर (551 मातृत्व मौतें प्रति एक लाख जीवित जन्म), वैश्विक औसत के दोगुने से भी अधिक (223 मातृत्व मौतें प्रति एक लाख जीवित जन्म) थी.

इन मौतों की मुख्य वजहों में गम्भीर रक्तस्राव, उच्च रक्तचाप, गर्भावस्था-सम्बन्धी संक्रमण, असुरक्षित गर्भपात के कारण जटिलताएं और मलेरिया, एचआईवी/एड्स समेत पहले से मौजूद स्वास्थ्य समस्याएँ हैं, जोकि गर्भावस्था में और गहरा जाती हैं.

प्रसव से पहले आठ बार जाँच कराए जाने की अनुशन्सा की गई है, मगर आँकड़े दर्शाते हैं कि लगभग एक-तिहाई महिलाओं के लिए ऐसी चार जाँच भी सम्भव नहीं हैं, और ना ही प्रसव के बाद देखभाल मिल पाती है.



From संयुक्त राष्ट्र समाचार

Sachin Gaur

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