संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास लक्ष्यों के लिए प्रोत्साहन योजना के बारे में यह रिपोर्ट, जी20 देशों के वित्त मंत्रियों और केन्द्रीय बैंकों के गवर्नरों की आगामी बैठक के मौक़े पर जारी की गई है, जो भारत के बैंगलौर शहर में शुक्रवार को शुरू हो रही है.
UNDP ने विकासशील देशों को, आज के अतिव्यापी संकटों के प्रभाव से बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई किए जाने का आहवान किया है. साथ ही यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि एक न्यायसंगत, समावेशी, और समान वैश्विक परिवर्तन के अनुरूप, वित्त सहायता उपलब्ध हो.
वैश्विक वित्त सहायता में बदलाव
यूएन विकास कार्यक्रम (UNDP) के प्रशासक अख़िम श्टाइनर ने कहा, “वैश्विक वित्तीय प्रणाली में परिवर्तन लाने के लिए आवश्यक तत्वों पर पहले से ही G20 के स्तर पर विचार हो रहा है जिनमें बहुपक्षीय विकास बैंक सुधार, ऋण पुनर्गठन, और नक़दी की मात्रा बढ़ाने जैसे विषय शामिल हैं. मगर विकसित और विकासशील देशों के बीच की दरार तेज़ी से बढ़ रही है और अब हमें कथनी से करनी की ओर बढ़ना होगा.”
इस नीति पत्र में, ऐस 52 निम्न व मध्य आय वाले विकासशील अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों की निशानदेही की गई है जो या तो ऋण के बोझ तले दबे हुए हैं या ऋण संकट के उच्च जोखिम में हैं. विश्व भर के निर्धनतम लोगों की लगभग 40 प्रतिशत आबादी, इन्हीं दो तरह के देशों में बसती है.
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 के सार्वजनिक ऋण स्टॉक में 30 प्रतिशत की कटौती करने से, आठ वर्षों के दौरान ऋण व ब्याज़ के भुगतान में, 148 अरब डॉलर तक की बचत करने में मदद मिल सकती है.
उच्च कर्ज़ का बोझ
UNDP का कहना है कि 25 विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को इस समय, अपने कुल राजस्व के 20 प्रतिशत से अधिक की रक़म, बाहरी क़र्ज़ के भुगतान पर ख़र्च करनी पड़ती है जोकि पिछले लगभग दो दशकों में, ऐसे देशों की सर्वाधिक संख्या है.
इसके परिणास्वरूप, आवश्यक सेवाओं पर ख़र्च करने की क्षमता प्रभावित होती है, जिसमें जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और उससे निपटने के उपाय भी शामिल हैं.
अख़िम श्टाइनर ने कहा, “भारी क़र्ज़ के बोझ तले दबे और वित्त सहायता तक पहुँच नहीं होने वाले देशों को, अन्य अनेक संकटों का भी सामना करना पड़ रहा है. ये देश कोविड-19 के आर्थिक प्रभाव, निर्धनता, और बदतर होती जलवायु आपदा से भी सर्वाधिक प्रभावित हैं.
उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि बहुपक्षीय परिदृश्य को बदलने के लिए धनी और निर्धन देशों के बीच गहराती खाई को कम किया जाए और ऐसा ऋण ढाँचा तैयार किया जाए जो हमारी जटिल, परस्पर जुड़ी हुई और कोविड-19 के बाद की दुनिया के लिए उपयुक्त हो.
टिकाऊ विकास लक्ष्य (SDG)
नीति पत्र में दिखाया गया है कि कम लागत वाले और लम्बी अवधि की परिपक्वता वाले कोष की मदद से, किस तरह महत्वपूर्ण वित्तीय स्थान मुक्त किया जा सकता है. ये दो ऐसे क्षेत्र हैं जो टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के लिए यूएन महासचिव की प्रोत्साहन योजना में शामिल हैं, जो गत सप्ताह जारी की गई थी.
17 टिकाऊ विकास लक्ष्यों (SDGs) में, अधिक न्यायसंगत और “हरित” भविष्य के लिए एक ख़ाका मुहैया कराया गया है, जिनकी प्राप्ति के लिए, वर्ष 2030 तक समय सीमा तय की गई है.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के
UNDP के मुख्य अर्थशास्त्री जॉर्ज ग्रे मॉलिना की दलील है कि विकासशील देश अगर अपने राजस्व के 14 प्रतिशत हिस्से ज़्यादा का क़र्ज़ उधार ले रहे हैं और 20 प्रतिशत से अधिक हिस्सा क़र्ज़ की अदायगी पर ख़र्च कर रहे हैं तो वो देश, इन टिकाऊ विकास लक्ष्यों, या जलवायु प्रतिबद्धताओं की प्रगति पर धन ख़र्च नहीं कर सकते.
रिपोर्ट में SDG और जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के अनुरूप निवेश के लिए क़र्ज़ की लागत को कम करने की सम्भावना भी दिखाई गई है.