अफ़ग़ानिस्तान में गम्भीर मानवीय संकट बरक़रार


संयुक्त राष्ट्र के उप विशेष प्रतिनिधि और अफ़ग़ानिस्तान के मानवीय समन्वयक, रमीज़ अलकबरोव ने न्यूयॉर्क में पत्रकारों को देश की ताज़ा गतिविधियों पर जानकारी दी, जहाँ अब 2 करोड़ 80 लाख लोग जीवित रहने के लिए मानवीय सहायता पर निर्भर हैं.

अपार मानवीय ज़रूरतें

राजधानी काबुल से वीडियोलिंक के ज़रिए वार्ता के दौरान उन्होंने बताया, ” हाल ही में तुर्कीये और सीरिया में आए विनाशकारी भूकम्पों के बावजूद, अफ़ग़ानिस्तान, 2023 में दुनिया का सबसे बड़ा मानवीय संकट बना हुआ है.”

संयुक्त राष्ट्र और उसके सहयोगी इस साल, अफ़ग़ान आबादी की सहायता के लिए, 4.6 अरब डॉलर की मांग कर रहे हैं.

रमीज़ अलकबरोव ने बताया कि पिछले 18 महीनों में, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 35 प्रतिशत तक की गिरावट आई है, दैनिक भोजन की लागत में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, और बेरोज़गारी में 40 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है.

इसके अतिरिक्त, लोगों की आय का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा अब केवल भोजन पर ख़र्च हो रहा है.

लड़कियों का समर्थन

इस बीच, लड़कियों को माध्यमिक विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने व महिलाओं के स्थानीय एवं अन्तरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियों के साथ काम करने पर प्रतिबंध लगाने के आदेश के बाद से, संयुक्त राष्ट्र ने सत्तारूढ़ तालेबान अधिकारियों के साथ सम्वाद जारी रखा है.

रमीज़ अलकबरोव ने कहा, “मुझे यह कहते हुए ख़ेद हो रहा है कि लड़कियों की शिक्षा के सम्बन्ध में हमने अभी तक कोई समाचार या कोई उत्साहजनक प्रगति नहीं दिखाई दी है. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र की कोशिशें जारी रहेगी.”

मानवीय कार्यों के सम्बन्ध में उन्होंने बताया कि पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र के राहत प्रमुख, मार्टिन ग्रिफ़िथ्स की यात्रा के बाद तालेबान ने, अपवाद के तौर पर, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में, महिलाओं की भागेदारी की मंज़ूरी दे दी है.

उन्होंने कहा, “स्वास्थ्य क्षेत्र में महिलाओं की भागेदारी पर दी गई छूट में, न केवल चिकित्सा सुविधाएँ शामिल हैं, बल्कि मनोवैज्ञानिक समर्थन, समुदाय-आधारित स्वास्थ्य गतिविधियाँ और पोषण भी शामिल है. और यह कार्यालयों, अस्पतालों, स्वास्थ्य केंद्रों या मोबाइल टीमों में काम करने वाली सभी महिलाओं पर लागू होता है.”

शिक्षा में अन्तर

महिला शिक्षकों के लिए भी स्थिति समान है, जिसके अन्तर्गत गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के ज़रिए प्रदान की जाने वाली समुदाय-आधारित शिक्षा भी आती है. हालाँकि इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया गया है, लेकिन “कई जगह स्थानीय समाधान” भी अपनाए जा रहे हैं, जो विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग हो सकते हैं.

उन्होंने कहा, “यह स्थानीय समाधान, हमेशा ज़मीनी स्थिति के अनुसार होते हैं – जैसेकि महरम (पुरुष अभिभावक) की उपलब्धता, लिंग-पृथक परिवहन की उपलब्धता, और चादर या हिजाब का उपयोग.”

हस्तक्षेप और आश्वासन

सहायता वितरण में तालेबान के हस्तक्षेप के बारे में रमीज़ अलकबरोव से प्रश्न पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि पिछले चार महीनों में कम से कम दो प्रांतों में हुए कुछ “गम्भीर मामलों” के बाद वितरण बंद कर दिया गया था. मुद्दों का हल होने पर ही उन्हें दोबारा शुरू किया गया.

उन्होंने कहा, “पहुँच और कार्यक्रमों के अस्थाई स्थगन का कारण बन रहीं अधिकाँश घटनाएँ, राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय एनजीओ के लिए काम करने वाली अफ़ग़ान महिलाओं के ख़िलाफ़ निर्देशों व उनसे जुड़े मामलों से सम्बन्धित हैं.”

उन्होंने कहा, “इनका सुरक्षा के मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं है, और हमें पूरे देश में पूर्ण रूप से भौतिक पहुँच हासिल हैं.”

इस प्रश्न के उत्तर में कि संयुक्त राष्ट्र कैसे सुनिश्चित करता है कि फण्डिंग तालेबान को न पहुँचे, रमीज़ अलकबरोव ने भुगतान सत्यापन प्रणाली और तीसरे पक्ष की निगरानी जैसे कुछ जोखिम प्रबन्धन एवं न्यूनीकरण तंत्र रेखांकित किए.

पूर्ण मानव अधिकार 

इसके अतिरिक्त, लाभार्थी संयुक्त राष्ट्र के साथ हॉटलाइन और अन्य माध्यमों से भी सम्वाद कर सकते हैं, जिसमें “शिकायत करना, जोखिम की चेतावनी देना, या मुख़बिर बनना भी शामिल है.”

वरिष्ठ सहायता अधिकारी से शिक्षा और मानवीय प्रतिबंधों पर तालेबान नेतृत्व के भीतर कथित विभाजन के बारे में भी पूछा गया, लेकिन उन्होंने इस बारे में टिप्पणी करना उचित नहीं समझा.

इसकी बजाय, उन्होंने सत्ता पर क़ाबिज़ अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया कि अफ़ग़ान लड़कियों और महिलाओं को समाज का पूर्ण सदस्य होने का अधिकार हो, जिसमें कामकाज, शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल व अन्य सेवाओं तक पहुँच शामिल है.

 



From संयुक्त राष्ट्र समाचार

Anshu Sharma

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