‘कोडिंग पहल’ के ज़रिए, बेहतर भविष्य के लिए डिजिटल कौशल का निर्माण


रवांडा के जिस गाँव में चैंटल नियोनकुरू परवरिश पाई थी, वहाँ डिजिटल तकनीक तक पहुँच नहीं थी, लेकिन जब उन्हें देश के उच्चतम विद्यालयों में से एक में दाख़िला मिला, तो चैंटल ने तुरन्त कम्प्यूटर विज्ञान का विषय ले लिया. परीक्षा में पास होने के बाद, उन्होंने अपनी माँ से कहा कि वह प्रोग्रामिंग में करियर बनाना चाहती हैं.

वह कहती हैं कि उनकी माँ की प्रतिक्रिया से उन्हें कोई अचरज नहीं हुआ: “वह हँसी और कहा ‘क्या आप जानते हो कि आप कहाँ रहती हो? यह तो शहरों के छात्रों, अमीर परिवारों या लड़कों के लिए होता है.”

वो दिन और आज का दिन – अलग-अलग विवरण के साथ, आज चैंटल की कहानी के संस्करण, अफ़्रीका और दुनिया भर की लड़कियाँ साझा करती हैं.

लड़कियों को, मज़बूत लैंगिक मानदंड व तकनीक के कम सम्पर्क में होने से, कम उम्र से ही इस क्षेत्र से बाहर रखा जाता है. वास्तविक महिला रोल मॉडल की अनुपस्थिति, उनके कम प्रतिनिधित्व को जारी रखती है और यह स्थिति चक्रीय रूप से बढ़ती जाती है.

वास्तविक दुनिया से दूर

यहाँ तक ​​कि जिन लड़कियों के पास तकनीकी अनुभव है भी, उनकी रुचि भी अक्सर लिंग-उत्तरदाई और अन्तःविषय पाठ्यक्रम की कमी से प्रभावित होती है.

कुछ ऐसा ही अनुभव था, सिज़ोलवेथु मफ़ांगा का, जिनके इस्वातिनी स्थित हाई स्कूल में सूचना और संचार तकनीकों पाठ्यक्रम मौजूद था. वह कहती हैं,  “मैं भाग्यशाली थी कि मुझे इसमें दाख़िला मिला”, लेकिन मैं इसमें दिलचस्पी नहीं जगा पाई. यह पाठ्यक्रम प्रौद्योगिकी को वास्तविक दुनिया की उन चुनौतियों से जोड़ने में विफल रहा, जिन्हें वो अपने समुदाय और देश को सामना करते हुए देख रहीं थी. शोध से मालूम होता है कि अनेक लड़कियों के करियर विकल्पों का  यही प्रमुख चालक होता है.

लेकिन सिज़ोलवेथु मफ़ांगा के लिए बड़ा बदलाव तब आया, जब उन्होंने ‘अफ़्रीकन गर्ल्स कैन कोड’ पहल (AGCCI) द्वारा चलाए जा रहे कोडिंग कैम्प में शिरकत की. वो कहती हैं, वहाँ तकनीक के लिए उनका जुनून बढ़ा, क्योंकि शिविर में “ऐसे बदलाव लाने वाले नवाचारों के प्रति जानकारी बढ़ी, जो अफ़्रीका में परिवर्तन लाने में सक्षम थे. मैंने सीखा कि अगर जुनून और दृढ़ संकल्प हो तो मैं बहुत कम, या बिना संसाधनों के बहुत बड़ा बदलाव ला सकती हूँ.

अनूठी डिजिटल पहल

AGCCI कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था (UN Women) और अफ़्रीकी संघ आयोग (AUC) ने, अन्तरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) और अफ़्रीका के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग (UNECA) के सहयोग से 2018 में शुरू किया था. यह सम्पूर्ण अफ़्रीका में लड़कियों के बीच डिजिटल साक्षरता का विस्तार करके, उन्हें सशक्त बनाने व कम्प्यूटर कौशल एवं तकनीकी करियर के रास्ते पर लाने की दिशा में काम कर रहा है.

एजीसीसीआई का कोडिंग कैम्प, चैंटल के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ था. वह, दवाबों के बावजूद, विश्वविद्यालय स्तर पर सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आगे बढ़ने का निर्णय लेने के लिए, इसी पहल को पूरा श्रेय देती हैं.

इस पहला के तहत, कुछ लड़कियों के लम्बे समय के जुनून को आगे बढ़ाने में मदद मिली, वहीं अनेक अन्य को तकनीक का अपना पहला वास्तविक अनुभव हासिल हुआ.

2019 में एक कोडिंग कैम्प में भाग लेने वाली मरियम सईद मोहम्मद का कहना है कि इसके सम्भावित सामाजिक अनुप्रयोगों की बात तो दूर, उन्हें डिजिटल तकनीक का पहले से बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था. वो कहती हैं, “बूटकैम्प से मुझे प्रौद्योगिकी की दुनिया अपनाने की प्रेरणा मिली और इसका कौशल हासिल करने में मेरी रुचि विकसित हुई, ताकि मैं उनका उपयोग हमारे समाज के सामने आने वाली समस्याओं को हल करने में कर सकूँ.”

पहल का मक़सद

इस पहल का उद्देश्य है – 17-25 वर्ष की कम से कम दो हज़ार लड़कियों को प्रशिक्षित करना, जिससे उन्हें कम्प्यूटर प्रोग्रामर, निर्माता और डिज़ाइनर के रूप में भविष्य के लिए तैयार किया जा सके.

सिज़ोलवेथु, चैंटल और मरियम ने जिन शिविरों में प्रशिक्षण लिया, उनकी स्थापना के अलावा, इसके पहले चरण में पूरे महाद्वीप में आईसीटी, लैंगिक व राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में कोडिंग को मुख्यधारा में लाने के लिए एक गाइड का विकास, एक ई-लर्निंग मंच का आरम्भ और एक वैब सीरीज़ का उत्पादन भी किया गया, जिससे महामारी के दौरान भी शिक्षा जारी रह सके.

इस पहल के तहत, लड़कियों को प्रशिक्षित करने और उन्हें सशक्त बनाने व तकनीकी क्षेत्र में उनके समावेशन को बढ़ावा देने के प्रयास किए जाते हैं.

अफ़्रीकी संघ और UNECA के लिए, UN Women की विशेष प्रतिनिधि, अवा नदिये-सेक कहती हैं, “हमारा उद्देश्य न केवल प्रौद्योगिकी और वित्त तक पहुँच से सम्बन्धित नीति-स्तर की बाधाओं को दूर करना है, बल्कि ऐसी लिंग-आधारित हानिकारक मानदंडों एवं प्रथाओं से निपटना भी है, जो महिलाओं और लड़कियों को STEM क्षेत्रों में आगे बढ़ने से रोकती हैं.”

व्यापक प्रभाव

सिज़ोलवेथू, अपने तकनीकी करियर में आगे बढ़ते हुए, अन्य लड़कियों के सशक्तिकरण के भी प्रयास कर रही हैं. वह कहती हैं, “मैं संयुक्त राष्ट्र और विभिन्न अन्य निकायों के लिए अनेक नीतिगत चर्चाओं व पैनलों में सक्रिय रूप से शामिल होती हूँ, ताकि दुनिया भर में अधिकाधिक लड़कियों को STEM विषयों के अध्ययन एवं व्यवसायों से अवगत कराकर, नामांकन करने में सक्षम बनाया जा सके.”

मरियम के लिए, एजीसीसीआई पहल ने एक ऐसा जुनून शुरू किया जो अब एक करियर का रूप ले चुका है. वो कहती हैं, “मुझे नई तकनीकों और उनके कार्यान्वन के बारे में सीखने में अधिक रुचि हो गई, और यह मेरे लिए कम्प्यूटर विज्ञान में अपनी डिग्री हासिल करने का एक मुख्य प्रेरक बना.”

वहीं, चैंटल उन कौशलों का उपयोग, ऐसे ऐप विकसित करने के लिए कर रही हैं, जिनसे उनके समुदाय को मदद मिल सके. जैसेकि चिकित्सा नियुक्तियों के लिए डिजिटल प्रणाली, बसों की बुकिंग के लिए प्रणाली वगैरा.

वह कहती हैं, ”मैं गर्व से कह सकती हूँ कि मैं आज जो भी हूँ, उसके पीछे एजीसीसीआई का हाथ है.”



From संयुक्त राष्ट्र समाचार

Anshu Sharma

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