विकलांगता वाले व्यक्तियों के अधिकारों पर, संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर गेरार्ड क्विन्न ने, मानवाधिकार परिषद को सौंपी अपनी नवीनतम रिपोर्ट में रेखांकित किया है कि समावेशी नीतियों के दृष्टिकोण और निजी सैक्टर की नवाचारी प्रतिभागिता से किस तरह, प्रगति का रास्ता निकल सकता है.
मानवाधिकार विशेषज्ञ गेरार्ड क्विन ने कहा, “देशों और तमाम समाजों को उन व्यवस्थाओं से दूर हटना होगा जो ऐतिहासिक रूप से, भौतिक सुरक्षा कवच मुहैया कराने और विकलांगता वाले व्यक्तियों को समाज के हाशिए पर धकेल देने के लिए बनाई गई थीं.”
“बाज़ार को क्या आकार दिया जाए, उसके लिए हमारे पास सेवाओं का एक नया दृष्टिकोण लागू करने के साधन मौजूद हैं.”
उन्होंने कहा कि सेवाओं व समर्थन की व्यवस्थाएँ तैयार करने, उनकी सुलभता और निगरानी के लिए, इनसानों के वजूद व सामाजिक समावेश से मानक निर्धारित होने चाहिए.
दरअसल, यही सिद्धान्त व नज़रिया, विकलांगता वाले व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेन्शन का आधार था, जिसमें स्वतंत्र रूप से जीवन जीने के अधिकार को वास्तविकता बनाना भी शामिल है.
अधिकारों के प्रोत्साहन के उपाय
गेरार्ड क्विन ने कहा कि अलबत्ता, सार्वजनिक सैक्टर को निजी सैक्टर से बदल देना कोई लक्ष्य नहीं है. बल्कि जब बाज़ारों पर ध्यान केन्द्रित किया जाए, तो उन्हें अधिकतम सामाजिक लाभ प्राप्ति के लिए तैयार किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, “अधिकारों को सही मायनों में आगे बढ़ाने वाले उत्पादों और सेवाओं के सृजन के लिए, सिविल सोसायटी के साथ सक्रिय सलाह व भागेदारी के मामले में, कारोबारी सैक्टर, बदलाव की एक सकारात्मक शक्ति साबित हो सकता है.”
पसन्द आधारित व्यवस्थाएँ
मानवाधिकार विशेषज्ञ गेरार्ड क्विन ने कहा कि वैश्विक स्तर पर जीवन यापन की अभूतपूर्व लागत के इस दौर में, विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिए, मानवाधिकार आधारित समर्थन प्रणालियों और सेवाओं को प्राथमिकता दी जानी होगी, ताकि किसी को भी पीछे ना छोड़ दिया जाए.
उन्होंने कहा कि सितम्बर 2023 में होने वाला टिकाऊ विकास लक्ष्य सम्मेलन, देखभाल के परम्परागत तरीक़ों से दूर हटने और पसन्द पर आधारित व्यवस्थाओं की दिशा में, समर्थन व सेवा सुलभता में बदलाव की ख़ातिर, समावेश और प्रगति के लिए एक अच्छा अवसर होगा.
गेरार्ड क्विन ने कहा कि देखभाल का आशय केवल एक ऐसे नज़रिए से हो सकता है जो व्यक्तिगत गरिमा और समावेश से मेल खाता हो.
विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं. वो यूएन स्टाफ़ नहीं होते हैं और ना ही उन्हें अपने कामकाज के लिए, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.