भारत: बेहतर जीवन के लिए कौशल निर्माण: भारत के सफ़ाई साथी


दिसम्बर की सर्द धुन्ध भरी सुबह के 7 बजे हैं, लेकिन 45 वर्षीय जानकी देवी एक घंटे पहले से ही देहरादून की सड़कों पर काम पर लग गई हैं. वह प्लास्टिक और अन्य अपशिष्ट वस्तुएँ उठाने का काम करती हैं, जिन्हें री-सायकिल किया जा सकता है. जानकी और ऐसे सैकड़ों कार्यकर्ता, उत्तराखंड की राजधानी देहरादून की सड़कों पर हर दिन, घरों व व्यवसायों से निकला हुआ कचरा इकट्ठा कर, अलग-थलग करते हैं.

यह काम काफ़ी कठिन, कमर तोड़ने वाला और अस्वास्थ्यकर है, क्योंकि कूड़ा बीनने वालों को अक्सर कचरे के ढेरों और यहाँ तक ​​कि खुले सीवरों के पास कचरा बीनना पड़ता हैं, जिससे पर्याप्त मात्रा में री-सायकिल योग्य कचरा उठाकर, री-सायकिल करने वालों को बेचा जा सके.

भारत में अनुमानतः 40 लाख सफ़ाई साथी (कचरा बीनने वाले) हैं, जो ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वे कागज़, प्लास्टिक, धातु और अनेक अन्य पुनर्चक्रण योग्य ठोस कचरे को खोजने, एकत्र करके अलग करने और उनका पुनर्चक्रण करने वालों को देकर अपनी जीविका चलाते हैं.

जलवायु परिवर्तन से जूझ रही दुनिया में सफ़ाई साथियों का काम अमूल्य है, क्योंकि वे हमें एक चक्रीय अर्थव्यवस्था में परिवर्तन करने में मदद करते हैं – एक ऐसी प्रणाली जो मौजूदा सीमित संसाधनों का रोना रोने के बजाय, कचरे को एक संसाधन के रूप में उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है.

उपलब्ध री-सायकिल किए हुए कागज़ का लगभग 25% हिस्सा, कचरा बीनने वालों से प्राप्त होता है, वहीं प्लास्टिक के मामले में यह संख्या 60% है. एक ऐसे देश के लिए, जो सालाना 6 करोड़ टन से अधिक ठोस कचरा पैदा करता है, इन मेहनती श्रमिकों का योगदान अपरिहार्य है.

अनुमानित 40 लाख सफ़ाई साथी (कचरा बीनने वाले), भारत में एक चक्रीय अर्थव्यवस्था के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं.

उत्थान कार्यक्रम

सफ़ाई साथी हालाँकि आमतौर पर समाज के सबसे कमज़ोर वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं और उन्हें रोज़ाना कई तरह की सामाजिक, आर्थिक एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से जूझना पड़ता है. उनमें से अधिकांश, किसी प्रसंस्करण संस्था या कम्पनी को री-सायकिल योग्य कचरा बेचकर थोड़ी आमदनी अर्जित करते हैं, जो आख़िर में उसे रीसाइकलिंग ईकाई दे देते हैं. लेकिन ये सफ़ाई साथी अभी भी समाज के हाशिए पर बने हुए हैं, और उन्हें सामाजिक मानदंडों के कारण  समाज से ज़्यादातर बाहर रखा जाता है.

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने ‘रबर, रसायन और पैट्रोकैमिकल्स कौशल विकास परिषद’ (RCPSDC) के साथ साझेदारी में, उत्तराखंड में सफ़ाई साथियों के लिए एक कौशल निर्माण कार्यक्रम – ‘उत्थान’ (प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबन्धन कार्यबल के जीवन उत्थान हेतु) शुरू किया.

यह पहल, स्वास्थ्य व स्वच्छता पर ध्यान देने के साथ-साथ अपशिष्ट संग्रह, पृथक्करण और इसके प्रबन्धन की आधुनिक अवधारणाओं पर, सफ़ाई साथियों को प्रशिक्षित करने पर केन्द्रित है और यूएनडीपी के साथ साझेदारी में उत्तराखंड कौशल विकास मिशन (यूकेएसडीएम) द्वारा चलाई जा रही परियोजना संकल्प का हिस्सा है.

उत्तराखंड सरकार में कौशल विकास और रोज़गार (UKSDM) सचिव, विजय कुमार यादव ने बताया, “कचरा बीनने वाले (सफ़ाई साथी), समाज के सबसे पिछड़े वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं. वे बेहद अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में काम करते हैं. लेकिन उनका काम बेहद अहम है. हमने सोचा कि उनके कौशल में सुधार करने, उनकी आय बढ़ाने और समाज में अधिक भागेदारी के लिए, उन्हें प्रशिक्षित किया जाए.”

अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले अधिकांश सफ़ाई साथी चूँकि कचरा उठाकर और री-सायकिल योग्य कचरे की बिक्री डीलरों को करके जीविकोपार्जन करते हैं, वे कामकाज के समय, प्रशिक्षण सत्रों में भाग लेने के लिए तैयार नहीं हुए.

RSPSDC की संचालन प्रबन्धक, प्रियदर्शिनी सिंह ने बताया, “उनके काम की प्रकृति को देखते हुए, हमने इन प्रशिक्षण सत्रों को उनके कार्य क्षेत्र के पास स्थित जगहों पर आयोजित किया. हमने उन्हें दिखाया कि कचरे को कैसे उठाना है, किससे बचना है, उपकरणों का उपयोग कैसे करना चाहिए और सुरक्षात्मक वस्त्र किस तरह पहनने चाहिए ताकि वे बीमार न हों.”

स्वयंसेवक उन झुग्गियों में गए जहाँ सफ़ाई साथी रहते हैं, उनका विवरण एकत्र किया और उन्हें प्रशिक्षण में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया.

दो दिवसीय सत्र के बाद, साथियों को कूड़ा बीनने की छड़ें, गम बूट, दस्ताने और चमकदार जैकेट प्रदान किए गए. यह सभी श्रमिकों के लिए ज़रूरी उपकरण हैं, क्योंकि उन्हें अक्सर गन्दी जगहों से ठोस कचरा बीनना पड़ता है.

उन्हें ठोस कचरे के प्रकारों के बारे में भी जानकारी दी गई, ताकि वे री-सायकिल योग्य सामग्रियों की पहचान कर सकें, और ख़तरनाक वस्तुओं को सावधानी से सम्भालकर अलग कर सकें.

सफ़ाई साथी भारत के स्वच्छ भारत अभियान के प्राथमिक योगदानकर्ताओं में से एक हैं.

विस्तार की योजना

शुरूआत में, इस कार्यक्रम में 250 कचरा बीनने वालों को शामिल किया गया था. अब इसे उत्तराखंड के अन्य प्रमुख शहरों में विस्तारित करने की योजना है.

सफ़ाई साथी जानकी, तराज़ू पर वजन करने के लिए प्लास्टिक कचरा रखते हुए कहती हैं, “हमें सिखाया गया कि कचरा कैसे उठाना है, गीला और सूखा कचरा, किस कूड़ेदान में डालना है, व अस्पताल (बायोमेडिकल) कचरे का निपटान कैसे करना है. मुझे अहसास हुआ कि काम करते समय मास्क पहनने से मुझे साँस लेने में आसानी हो रही है, क्योंकि किसी भी तरह का हानिकारक धुँआ नाक से अन्दर नहीं जा रहा.”

“स्वास्थ्य का ख़याल रखना भी, काम के जितना ही महत्वपूर्ण है.”



From संयुक्त राष्ट्र समाचार

Anshu Sharma

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