स्कूली बच्चों की यह पहल, वैश्विक जल संकट से निपटने के इरादे से कारगर कार्रवाई के लिए भावी पीढ़ी के सकंल्प को दर्शाता है.
पेरू की एक प्राचीन लोक कथा के अनुसार, एक हमिंगबर्ड ने जंगल में लगी आग को जब बूँद-बूँद जल से बुझाने की कोशिश की, तो अन्य जानवरों ने गुंजन पक्षी का मज़ाक उड़ाया. पक्षी ने जवाब में कहा, “मेरे बस में जो है, वो मैं कर रही हूँ.”
जल एवं साफ़-सफ़ाई मामलों के लिए यूएन संस्था (UN Water) ने इसी लोक कथा से प्रेरणा लेते हुए, ‘Be the change’ नामक एक मुहिम तैयार की है, जोकि 22 मार्च को ‘विश्व जल दिवस’ के दौरान आरम्भ होगी.
इस मुहिम के ज़रिये सर्वजन को जल के इस्तेमाल और प्रबन्धन में बदलाव लाने के लिए हरसम्भव प्रयास करने के लिए प्रेरित किया जाएगा.
इसी मुहिम के तहत, यूएन ने स्कूली बच्चों को ओरिगामी हमिंगबर्ड बनाने के लिए लामबन्द किया है, जिनकी आकृतियों को जल सम्मेलन के दौरान यूएन मुख्यालय में प्रदर्शित किया जाएगा.
इसका उद्देश्य, सम्मेलन में हिस्सा ले रहे प्रतिभागियों को उन बच्चों से जोड़ना है, जिनके भविष्य पर जोखिम मंडरा रहा है.

एक अनुमान के अनुसार, विश्व भर में ख़राब जल, साफ़-सफ़ाई और स्वच्छता के कारण होने वाली बीमारियों से प्रति वर्ष 14 लाख लोगों की मौत होती है और सात करोड़ से अधिक लोगों के जीवन की अवधि घट जाती है.
विश्व भर में, हर चार में से एक, लगभग दो अरब लोगों की सुरक्षित पेयजल तक पहुँच नहीं है.
घर-परिवारों – शौचालयों, नालियों और गटर समेत अन्य स्थानों से आने वाला अपशिष्ट जल बहकर, नुक़सानदेह पदार्थों के साथ वापिस प्रकृति में लौट जाता है.
घाना की राजधानी अकरा के एक जूनियर हाई स्कूल से लगभग 50 ओरिगामी हमिंगबर्ड ‘रवाना’ हुई हैं, जो अपने साथ छात्रों द्वारा तैयार संकल्पों को भी ला रही हैं.
एक 13-वर्षीय छात्र जाँ दे व्रियेस अस्सान ने यूएन न्यूज़ को बताया कि स्कूल आने से पहले उनके दिन की शुरुआत अक्सर, जल भरने के लिए लगी क़तार में खड़े होकर होती है.
“जल संकट ने मेरे अकादमिक प्रदर्शन को प्रभावित किया है,” चूँकि वो जब तक दैनिक कार्यों से निवृत्त होते हैं, उनकी सुबह की पढ़ाई का समय पूरा हो चुका होता है.
डैरिक ओफ़ोर नामक एक शिक्षक ने कहा कि उनके छात्रों के पास स्कूलों में पेयजल और हाथ धोने के लिए पानी की क़िल्लत है. उन्होंने भरोसा जताया कि यूएन सम्मेलन में जुट रहे नेता, उनके समुदाय को जल के विविध स्रोत मुहैया कराने के लिए हरसम्भव प्रयास करेंगे.
डैरिक ओफ़ोर ने स्वयं अपने घर पर इस मूल्यवान संसाधन के संरक्षण के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की है.
“जब हमारे स्कूल में पीने के लिए अच्छा जल भी नहीं है, तो कभी-कभी स्नानघर को पोंछने या हाथ धोने के लिए पानी का इस्तेमाल करना ग़लत महसूस होता है.”

काग़ज़ों से बनाई गईं 400 से अधिक हमिंगबर्ड जापान से रवाना हुई हैं, जहाँ ओरिगामी नामक इस कला ने जन्म लिया.
क्योतो शहर के एक जूनियर हाई स्कूल में छात्र ने बताया कि, “मुझे लगा कि महासागर में एक बूँद की तरह, विश्व भर में हमारे छोटे क़दम भी एक बड़ा असर लाते हैं.”
इसके अलावा, ब्राज़ील, बुल्गारिया, कैनेडा, फ़्राँस, इटली, नॉर्थ मैसेडोनिया, मैक्सिको, पोर्तुगल, स्पेन और स्वीडन समेत विश्व के अन्य हिस्सों से हजारों ओरिगामी हमिंगबर्ड न्यूयॉर्क पहुँच रही हैं.
न्यूयॉर्क में इकॉल नामक एक फ़्रेंच-अमेरिकी स्कूल की आरम्भ से आठवीं कक्षाओं ने विश्व जल दिवस की एक वर्कशॉप में हिस्सा लिया, जहाँ छात्रों ने वर्गाकार काग़ज़ को गुंजन पक्षी की आकृतियों में ढाला और फिर उन पर अपनी प्रतिबद्धताओं को व्यक्त किया.
स्कूल के प्रमुख ज्याँ-येव्स वेसेआउ का कहना है कि बच्चों के लिए छोटी आयु में ही जल के बारे में सोचना बहुत ज़रूरी है, चूंकि हमारी पीढ़ी को बहुत से जवाब देने हैं और यह बच्चों का ग्रह है.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि बच्चों को जल समस्याओं के बारे में तात्कालिकता के साथ सोचना होगा और फिर एक हमिंगबर्ड की तरह, अपने स्तर पर प्रयास करने होंगे.
लुऐन ऐडम्स ने इस स्कूल में अपने एक कठपुतली नाटक का मंचन किया. उन्होंने यूएन न्यूज़ को बताया कि हमिंगबर्ड का अकेले खड़े होकर कोशिश करना, अनेक शरीरों के मन को एक साथ जोड़ता है.
यानि, जब अन्य पशु-पक्षी यह देखेंगे कि एक नन्हा सा प्राणी अपने बूते इतना कुछ कर रहा है, तो वे भी अन्तत: उनका अनुसरण करेंगे.
लुऐन ऐडम्स के अनुसार, यह एकजुटता फिर एक तरंग की तरह फैल जाएगी और लहर का आकार ले लेगी – एक ऐसी विशाल लहर, जिससे दुनिया के लिए कुछ बेहतरीन काम किया जा सकता है.
