दासता की विरासत, नस्लवाद से शिक्षा के ज़रिये लड़ने की पुकार


उन्होंने कहा कि दासता का इतिहास, पीड़ा और बर्बरता का एक ऐसा इतिहास है, जोकि मानवता को उसके बदतरीन रूप में दर्शाता है.

“मगर, यह चकित व प्रेरित करने वाले साहस का भी इतिहास, जोकि मनुष्यों को सर्वोत्तम रूप में प्रदर्शित करता है.”

असम्भव परिस्थितियों में खड़े होने वाले दासों से लेकर, दासता प्रथा का अन्त करने की मांग करने लोगों तक, जिन्होंने इस क्रूरतापूर्ण अपराध के विरुद्ध आवाज़ उठाई.

400 से अधिक वर्षों तक, एक करोड़ 30 लाख से अधिक अफ़्रीकियों को अटलांटिक महासागर के पार ले जाया गया, जिसे यूएन महासचिव ने दासकरण का एक दुष्ट उद्यम क़रार दिया है.

महिलाओं, पुरुषों वबच्चों को उनके परिवारों व गृहभूमि से दूर करके, उनके समुदायों को छिन्न-भिन्न कर दिया गया, उनके शरीरों का वस्तुओं की तरह इस्तेमाल किया गया और उन्हें मानवता से वंचित किया गया.

दुखद विरासत की परछाई

महासचिव गुटेरेश ने कहा कि पार-अटलांटिक व्यापार की विरासत की छाया आज भी हमें परेशान करती है.

“हम सदियों के औपनिवेशिक शोषण से मौजूदा सामाजिक व आर्थिक विषमताओं तक एक सीधी रेखा खींच सकते हैं.“

“और हम उन नस्लवादी सम्बोधनों को भी पहचान सकते हैं, जिन्हें लोकप्रिय बनाकर, दास व्यापार की अमानवीयता को तर्कसंगत ठहराया गया, उस श्वेत वर्चस्ववादी नफ़रत में, जोकि फिर से उभार पर है.”

यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने ज़ोर देकर कहा कि यह हर किसी का दायित्व है कि दासता की विरासत, नस्लवाद से लड़ा जाए, जिसके लिए शक्तिशाली हथियार, शिक्षा का उपयोग किया जान होगा.

इस वर्ष, अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर इसी थीम को रेखांकित किया गया है.

संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में दासता की विरासत पर स्मारक.

नस्लवाद के विरुद्ध एकजुटता

यूएन प्रमुख ने कहा कि दासता के इतिहास को पढ़ाये जाने से, मानवता की सबसे ख़राब लालसाओं से रक्षा करने में मदद मिल सकती है.

सदियों तक दास प्रथा को पोषित करने वाली धारणाओं व विश्वासों का अध्ययन करके, हम हमारे दौर के नस्लवाद का मुखौटा उतार सकते हैं.

“और दासता के पीड़ितों के सम्मान में स्मरण के ज़रिये, हम कुछ हद तक उन लोगों के लिए गरिमा बहाल कर सकते हैं, जिन्हें इससे निर्दयतापूर्वक वंचित कर दिया गया था.”

यूएन प्रमुख ने सर्वजन से, हर स्थान पर नस्लवाद के विरुद्ध एकजुट होने का आग्रह किया है, और एक ऐसे विश्व को आकार देने का आहवान किया है, जहाँ हर कोई स्वतंत्रता, गरिमा व मानवाधिकारों के साथ जी सके.



From संयुक्त राष्ट्र समाचार

Sachin Gaur

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