रमदान: ‘एकजुटता व दान-परोपकार का महीना’


यूएन प्रमुख ने रमदान की भावना और यूएन मिशन के बीच तुलना करते हुए कहा कि समझदारी और करुणा, इन दोनों को परिभाषित करती है और इनका उद्देश्य – संवाद, एकता और शान्ति को बढ़ावा देना है.

एंतोनियो गुटेरेश ने वीडियो सन्देश में कहा है, “इस चुनौतीपूर्ण दौर में, मेरी संवेदना, युद्ध, विस्थापन और तकलीफ़ों का सामना कर रहे लोगों के साथ है. मैं भी रमदान मनाने वालों की – शान्ति, परस्पर सम्मान और एकजुटता के लिए पुकार में शामिल हूँ.”

इस्लामी दान परम्परा

रमदान को दान-परोपकार का महीना भी माना जाता है, और मज़हब से प्रेरित दान-परोपका (ज़कात) के लिए बेहतरीन मौक़ा माना जाता है, जो ख़ासतौर पर विस्थापितों और मुसाफ़िरों के लिए होता है.

यूएन शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने शुक्रवार को कहा है कि इस्लामी दान व परोपकारी भावना, दुनिया भर में शरणार्थियों की मदद करने में अहम भूमिका निभाती है.

एजेंसी की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि उसके ‘शरणार्थी ज़कात कोष’ ने वर्ष 2017 में शुरू होने के बाद से, 26 देशों में जबरन विस्थापित 60 लाख शरणार्थियों की मदद की है.

नई शुरुआत

यूएन शरणार्थी एजेंसी में वरिष्ठ सलाहकार और खाड़ी सहयोग परिषद में एजेंसी के प्रतिनिधि ख़ालेद ख़लीफ़ा का कहना है, “एक यूएन संगठन होने के नाते, हम इस क्षेत्र में नए हैं.”

“हम उन स्थानों पर दान व ज़कात देने के लिए एक नया मंच मुहैया कराना चाहते थे जहाँ मुस्लिम संगठन, वित्तीय पाबन्दियों के कारण काम करने में सहज महसूस नहीं करते हैं, क्योंकि हमें इस पर अमल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की विशाल मशीनरी की आवश्यकता है. जैसेकि अफ़ग़ानिस्तान में, सोमालिया में और रोहिंज्या लोगों के लिए.”

उन्होंने साथ ही कहा, “इस्लामी दान व ज़कात हमेशा से रही है – हम इस क्षेत्र में नए कार्यकर्ता हैं.”

दान की केन्द्रीय भूमिका

यूएन शरणार्थी एजेंसी की – इस्लामी परोपकार वार्षिक रिपोर्ट दिखाती है कि वर्ष 2022 में इस कोष के ज़रिए लगभग 3 करोड़ 80 लाख डॉलर की रक़म एकत्र की गई.

ख़ालेद ख़लीफ़ा बताते हैं कि किस तरह इस्लाम में दान व परोपकार (ज़कात) की केन्द्रीय भूमिका ने, इस पहल की कामयाबी में अहम भूमिका निभाई है.

उन्होंने ज़कात के सिद्धान्त के बारे में भी कुछ जानकारी साझा की, जो मुसलमानों के लिए अनिवार्य दान कर्तव्य है, जिसमें वो हर साल अपनी अप्रयुक्त बचत का ढाई प्रतिशत हिस्सा दान करते हैं.

ज़कात, इस्लाम के पाँच स्तम्भों में से एक है, जिससे इसकी अहमियत विदित है.

सर्वाधिक निर्बलों की मदद

इराक़ में मोहम्मद और उनका परिवार, इफ़्तार के लिये तैयारी करते हुए. रमदान महीने के दौरान, मुसलमान लोग दिन भर का रोज़ा (व्रत) रखने के बाद, सूरज छिपने के बाद भोजन खाते हैं.

ख़ालिद ख़लीफ़ा ने वैसे तो इस कोष से मिलने वाले संसाधन, ख़ासतौर से मुस्लिम देशों में शरणार्थियों की मदद करने के लिए सीमित नहीं रखा जाता है, मगर यूएन शरणार्थी के वैश्विक सहायता परिदृश्य में जितने जबरन विस्थापित शरणार्थी हैं, उनमें से लगभग 50 प्रतिशत संख्या मुस्लिम देशों में है.

एजेंसी ने 2017 में शुरू किए गए इस कोष से लाभान्वित होने वालों में – बांग्लादेश में रोहिंज्या संकट, यमन में आन्तरिक विस्थापन और लेबनान मैं सीरियाई शरणार्थी संकट को प्रमुखता के साथ गिनाया है. इन लाभान्वितों को नक़दी सहायता और वस्तुएँ सीधे तौर पर मुहैया कराने के रूप में इस कोष से मदद की गई.

‘नवाचारी वित्त’

वैसे तो इस कोष से, यूएन शरणार्थी के पूरे बजट में छोटा सा ही योगदान मिलता है मगर इसके सकारात्मक प्रभाव की लगातार वृद्धि नज़र आ रही है.

यूएन शरणार्थी एजेंसी ने इस्लामी दान व परोपकारिता की सम्भव क्षमता का लाभ उठाने के मक़सद से, इस्लामी विकास बैंक की साझेदारी में एक नई पहल शुरू की है जिसका नाम है – वैश्विक इस्लामी शरणार्थी कोष.

ख़ालेद ख़लीफ़ा ने बताया कि एजेंसी, दुनिया भर में शरणार्थियों की भलाई की ख़ातिर, नए राजस्व स्रोत सृजित करने के लिए, लगातार “नवाचारी वित्त” की तलाश में रहती है.

उन्होंने बताया कि ‘यूएन शरणार्थी शरणार्थी ज़कात कोष’ को दान (ज़कात) स्वीकार करने और उसे योग्य शरणार्थियों व देशों के भीतर ही विस्थापित होने वाले लोगों में बाँटने के लिए, अनेक इस्लामी विद्वानों और संस्थाओं ने स्वीकृत किया है.



From संयुक्त राष्ट्र समाचार

Mehboob Khan

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