यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने ज़ोर देकर कहा कि यह हर किसी का दायित्व है कि दासता की विरासत, नस्लवाद से लड़ा जाए, जिसके लिए शक्तिशाली हथियार, शिक्षा का उपयोग किया जान होगा.
इस वर्ष, अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर इसी थीम को रेखांकित किया गया है. इस दिवस के ज़रिये, दासता का शिकार और मानवता के विरुद्ध सबसे भयावह अपराधों के पीड़ितों को याद किया जाता है.
दास बनाए जाने की प्रथा को 400 वर्ष से अधिक समय तक क़ानूनी स्वीकृति थी, जोकि 19वीं सदी तक जारी रही और जिस दौरान, डेढ़ करोड़ से अधिक पुरुषों, महिलाओं व बच्चों को जबरन निर्वासित किया गया.
दासता की लम्बी परछाई
महासचिव ने ध्यान दिलाया कि दासता के घाव आज भी, सम्पन्नता, स्वास्थ्य, शिक्षा व अवसरों में पसरी विषमताओं में देखे जा सकते हैं, और श्वेत वर्चस्ववादी नफ़रत फिर से उभार पर है.
उन्होंने कहा कि दास व्यापार के ज़रिये औपनिवेशिक ताक़तों की सम्पदा व समृद्धि में वृद्धि हुई, मगर अफ़्रीकी महाद्वीप का विकास सदियों के लिए अवरुद्ध हो गया.
“दासता की लम्बी परछाई आज भी, अफ़्रीकी मूल के लोगों के जीवन पर मंडराती है, जोकि अपने साथ, अनेक पीढ़ियों के सदमे को साथ लेकर जीते हैं और जो आज भी हाशिएकरण, बहिष्करण व कट्टरता का सामना कर रहे हैं.”
पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने पर बल
महासचिव गुटेरेश ने हर देश में सरकारों से, स्कूली पाठ्यक्रम में ऐसी पाठ्य सामग्री को जगह देने का आग्रह किया है, जिसमें पार-अटलांटिक दास व्यापार की वजहों, उसके रुपों, और दीर्घकालिक दुष्परिणामों की जानकारी दी गई हो.
उन्होंने कहा कि दासता के भयावह इतिहास के बारे में सीखना और पढ़ाया जाना होगा, और हमें अफ़्रीकी व विदेशों में बसे अफ़्रीकी समुदाय के इतिहास को पढ़ाना होगा, जो जहाँ भी गए, उन्होंने वहाँ के समुदायों को समृद्ध बनाया.
“दासता के इतिहास को पढ़ा करके, हम मानवता के सर्वाधिक घातक आवेगों से रक्षा करने में मदद कर सकते हैं, और दासता के पीड़ितों को सम्मान देकर, हम कुछ हद तक उन लोगों के लिए गरिमा बहाल कर सकते हैं, जिन्हें इससे निर्दयतापूर्वक वंचित कर दिया गया था.”
नस्लवाद की बुनियाद पर प्रहार
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें सत्र के लिए अध्यक्ष कसाबा कोरोसी ने कहा कि पार-अटलांटिक दास व्यापार ख़त्म हो चुका है, मगर जिस बुनियाद पर उसे खड़ा किया गया था, उसे अभी पूरी तरह ध्वस्त नहीं किया जा सका है.
उन्होंने काले समुदाय के लोगों के विरुद्ध नस्लवाद और भेदभाव का उल्लेख किया, जोकि मौजूदा दौर में अब भी हमारे समाजों में व्याप्त है.
यूएन महासभा प्रमुख के अनुसार, इस वजह से यह स्मरण दिवस इतना अहम है, चूँकि इससे विश्व के साझा इतिहास में एक बेहद काले और शर्मनाक अध्याय पर चिन्तन-मनन का अवसर प्राप्त होता है.
“इतिहास, जिसके तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा नहीं जाना चाहिए, वो हम सभी के लिए एक सबक़ साबित होना चाहिए.”
उन्होंने कहा कि शिक्षा के ज़रिये निर्विवाद तथ्यों को बढ़ावा दे सकते हैं, अतीत की या मौजूदा वर्चस्ववादी सोच में निहित ग़लत धारणाओं के प्रति जागरूकता का प्रसार कर सकते हैं, और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि किसी को फिर से वैसे अनुभवों से ना गुज़रना पड़े, जैसाकि उन डेढ़ करोड़ लोगों ने किया, जिनकी स्मृति में हम आज यहाँ एकत्र हुए हैं.
महासभा प्रमुख ने कहा कि शिक्षा के ज़रिये, हम नस्लवाद की दर्दनाक व्यथा कथाओं को शान्ति के भविष्य में तब्दील कर सकते हैं.