समाचार माध्यमों के अनुसार, अज्ञात चरमपंथियों ने सीमा-पार लेबनान से इसराइल में रॉकेटों की बौछार की है, जिसके बाद इसराइली आम नागरिकों को शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा.
इन रॉकेट हमलों में कम से कम दो लोगों के घायल होने की ख़बर है.
संयुक्त राष्ट्र प्रवक्ता स्तेफ़ान दुजैरिक ने न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में पत्रकारों को बताया कि हम लेबनान से उत्तरी इसराइल में अनेक रॉकेट दागे जाने की निन्दा करते हैं.
उन्होंने कहा कि लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अन्तरिम बल (UNIFIL) ने ‘ब्लू लाइन’ के दोनों ओर स्थित पक्षों के साथ सम्पर्क स्थापित किया गया है.
यह एक ऐसा मोर्चा है, जिसे यूएन ने वर्ष 2000 में स्थापित किया था, ताकि दक्षिणी लेबनान पर आक्रमण के बाद इसराइली सैन्य बलों की वापसी की पुष्टि की जा सके.
यूएन प्रवक्ता स्तेफ़ान दुजैरिक ने सभी पक्षों से संयुक्त राष्ट्र शान्तिरक्षकों के साथ सम्पर्क स्थापित करने और ऐसी किसी भी एकतरफ़ा कार्रवाई से बचने का आग्रह किया है, जिससे तनाव और अधिक भड़कता हो.
हालात ना भड़कने देने पर बल
इस बीच, मध्य पूर्व शान्ति प्रक्रिया के लिए यूएन विशेष समन्वयक टोर वैनेसलैंड ने लेबनान से ताबड़तोड़ रॉकेट दागे जाने की निन्दा की है.
उन्होंने कहा कि वर्ष 2006 के बाद से यह पहली बार है जब इतनी संख्या में रॉकेट हमले किए गए हैं.
“यह अस्वीकार्य है और इसे रोकना होगा. व्यापक स्तर पर तनाव भड़कने से बचा जाना होगा.”
मौजूदा घटनाक्रम से, यहूदियों और मुसलमानों, दोनों के लिए पवित्र मानी जाने वाली, अल-अक़्सा मस्जिद परिसर की सुरक्षा व वहाँ पहुँच के विषय पर इसराइल और फ़लस्तीन के बीच तनाव और गहरा हो गया है.
यह इस्लाम में तीसरा सबसे पवित्र स्थल है और यहाँ वो केन्द्रीय मस्जिद भी स्थित है, जिसे फ़लस्तीनी अल-क़िबली के रूप में भी जानते हैं.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने बुधवार को इसराइली सुरक्षा बलों और फ़लस्तीनी उपसाकों के बीच उस दिन मस्जिद में हुई हिंसा की तस्वीरों को स्तब्धकारी क़रार देते हुए अपना क्षोभ प्रकट किया था.
मीडिया ख़बरों के अनुसार, इसराइली बलों ने अल-अक्सा मस्जिद परिसर में छापा मारकर, सैकड़ों लोगो को गिरफ़्तार कर लिया और इस कार्रवाई के दौरान मारपीट किए जाने और पटाखे फोड़े जाने की घटना हुई.
‘अत्यधिक बल प्रयोग’
इस बीच, यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने गुरूवार को जारी अपने एक वक्तव्य में इसराइली सुरक्षा बलों द्वारा मस्जिद के भीतर उपासकों पर हमलों व हिंसक कार्रवाई की निन्दा की है.
क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े पर यूएन की विशेष रैपोर्टेयर फ़्रासेस्का ऐलबेनीज़ ने कहा कि रमदान प्रार्थना सभा के लिए जुटे फ़लस्तीनी मुसलमान, अल-अक़्सा मस्जिद में उपासना कर रहे थे, जोकि उनका अधिकार है.

उनके विरुद्ध इसराइली एजेंसियों ने अत्यधिक बल प्रयोग किया, जिसे न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है.
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने बताया कि बुधवार को हुई इस कार्रवाई में 31 फ़लस्तीनी घायल हुए हैं और घायलों के उपचार के लिए स्वास्थ्यकर्मियों को वहाँ जाने से रोका गया है.
फ़्राँसेस्का ऐलबेनीज़ के अनुसार, इसराइसी सुरक्षा बलों ने अपनी कार्रवाई के दौरान आँसू गैस, स्टन ग्रेनेड समेत अन्य सामग्री का इस्तेमाल किया और मुसलमान उपासकों को बन्दूक के बट और लाठी से पीटा.
बताया गया है कि 450 फ़लस्तीनी पुरुषों को गिरफ़्तार किया गया है और कुछ को बाहर ले जाते समय, लात और थप्पड़ भी मारे गए.
‘लापरवाही भरा और ग़ैरक़ानूनी’
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने इसराइली सैन्य बलों की उस कार्रवाई पर क्षोभ प्रकट किया है, जिसके तहत लगभग 165 यहूदी इसराइलियों को परिसर में प्रवेश करने की अनुमति दी गई है.
उनके अनुसार यह यथास्थितिवाद समझौते का हनन है, जबकि इसराइल का यह दायित्व है कि इसका सम्मान किया जाए.
“इसराइली बाशिन्दों की यह चाह, भली-भांति ज्ञान है कि मस्जिद को या तो ध्वस्त कर दिया जाए या फिर परिसर के आंशिक या पूरे हिस्सो को सिनेगॉग में तब्दील कर दिया जाए, जैसाकि हेब्रॉन में इब्राहिमी मस्जिद में हुआ.”
उन्होंने कहा कि फ़लस्तीनियों के बीच यह गहरी बेचैनी की एक बड़ी वजह है.
फ़्राँसेस्का ऐलबेनीज़ ने कहा कि यह अनिवार्य है कि सभी पक्ष, बिना किसी अपवाद के अन्तरराष्ट्रीय क़ानून का निर्वहन करें और इसके अभाव में अन्याय व दंडमुक्ति की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है.