यूएन जनसंख्या प्रभाग के निदेशक के अनुसार, इन रुझानों का मुख्य कारक इन दोनों देशों में प्रजनन स्तर है. चीन और भारत की कुल आबादी, विश्व की कुल आठ अरब जनसंख्या के एक-तिहाई से भी अधिक है.
इस वर्ष, अप्रैल महीने के अन्त तक, भारत की आबादी एक अरब 42 करोड़, 57 लाख, 75 हज़ार 850 के आँकड़े तक पहुँच जाने की सम्भावना है, जोकि वर्ष 2022 में चीन की एक अरब 40 करोड़ आबादी से कुछ अधिक है.
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान दर्शाते हैं कि आबादी में यह वृद्धि अगले अनेक दशकों तक जारी रह सकती है.
निदेशक विल्मॉथ ने न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में एक पत्रकार वार्ता के दौरान कहा, “चीन की आबादी अपने उच्चतम स्तर पर 2022 में पहुँची और अब उसमें गिरावट शुरू हो गई है.”
“अनुमान दर्शाते हैं कि चीनी जनसंख्या का आकार, इस सदी के अन्त से पहले एक अरब के आँकड़े से नीचे पहुँच सकता है.”
जन्म दरों का प्रभाव
वर्ष 1971 में इन दोनों देशों में प्रजनन का स्तर लगभग समान था, और प्रति महिला लगभग छह बच्चों का जन्म हो रहा था, और यही रुझान 21वीं सदी में उन्हें इस पड़ाव तक लाया है.
1970 के दशक के अन्त तक, चीन में प्रजनन दर में 50 फ़ीसदी की गिरावट आई, और यह प्रति महिला तीन बच्चों के जन्म तक पहुँच गई, लेकिन भारत में इस स्तर तक पहुँचने में तीन दशकों से भी अधिक समय लगा.
आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के लिए यूएन विभाग ने बताया कि बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में, दोनों देशों ने बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिए प्रयास किए हैं, और प्रजनन स्तर पर लक्षित नीतियों को अपनाय गया.
“इन नीतियों, और मानव पूँजी व लैंगिक समानता में निवेश के ज़रिये, चीन में 1970 के दशक में प्रजनन दर में गिरावट दर्ज की गई और फिर 1980 और 1990 में चरणबद्ध ढंग से गिरावट आई.”
वर्ष 2022 तक, चीन, विश्व में सबसे कम प्रजनन दर वाले देशों में है, जहाँ जीवनकाल में औसतन प्रति महिला 1.2 जन्म होते हैं.

1980 के दशक में, चीन ने तथाकथित ‘एक बच्चा नीति’ को भी अपनाया था, जिसके तहत हर एक परिवार केवल एक बच्चे तक सीमित हो गया. इस नीति को 2016 में समाप्त कर दिया गया.
वहीं, भारत में मौजूदा प्रजनन दर, प्रति महिला दो जन्म हैं, जोकि 2.1 की प्रतिस्थापन दर से थोड़ा कम है, जोकि दीर्घकाल में जनसंख्या स्थिरता के लिए ज़रूरी स्तर बताया गया है.
दीर्घकालिक दृष्टि
जॉन विल्मॉथ ने बताया कि वृद्धजन की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है. 2015 और 2023 के बीच, 65 वर्ष और उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों की संख्या चीन में लगभग दोगुनी हो जाने और भारत में दोगुने से अधिक होने की सम्भावना है.
उन्होंने कहा कि ये जनसंख्या रुझान, वृद्धजन के लिए सामाजिक समर्थन व संरक्षण प्रदान करने में आने वाली चुनौतियों को भी रेखांकित करते हैं.
यूएन विशेषज्ञ ने ज़ोर देकर कहा कि यह समय दीर्घकालिक दृष्टि से विचार करने और समाजों व पीढ़ियों के बीच, एकजुटता को बढ़ावा देने का है.
जॉन विल्मॉथ ने दीर्घकालिक योजनाओं के तहत, जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों पर भी बल दिया है. उन्होंने ध्यान दिलाया है कि भारत और चीन में, बढ़ती आबादी और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि से टिकाऊ खपत और उत्पादन की दिशा में बढ़ने के प्रयासों को प्रभावित होने से रोकना होगा.
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के सबसे गम्भीर प्रभावों के दंश को कम करने के लिए, सभी देशों को जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता को घटाना होगा.