सार्वजनिक व्यवस्था बिल (Public Order Bill) नामक यह विधेयक, ब्रिटेन की संसद में बुधवार को पारित किया गया, जिसे मानवाधिकार उच्चायुक्त ने ‘बेहद परेशान करने वाला क़ानून क़रार दिया है.
यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने कहा कि ये विशेष रूप से चिन्ताजनक है कि इस क़ानून में पुलिस की शक्तियों में विस्तार किया गया है, और अब उनके पास बिना किसी सन्देह के किसी भी व्यक्ति की रोककर तलाशी लेने की छूट होगी.
साथ ही, कुछ अपराधों की अस्पष्ट और व्यापक तरीक़े से व्याख्या की गई है, और शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों में हिस्सा लेने वाले लोगों पर अनावश्यक प्रतिबन्ध थोपे जाने का भी प्रावधान है
उन्होंने ब्रिटेन की सरकार से “जल्द से जल्द” इस क़ानून को वापिस लेने की अपील की है, जिसे अभी ब्रिटेन के शाही परिवार से स्वीकृति मिलनी बाक़ी है.
ब्रिटेन की सरकार ने स्पष्ट किया है कि शान्तिपूर्ण प्रदर्शन करने का लोगों का बुनियादी अधिकार अभी भी सुरक्षित है लेकिन इसके ज़रिये विरोध के दौरान तथाकथित “गुरिल्ला तौर-तरीक़ों” को अपनाने के लिए नए दंड निर्धारित किए गए हैं.
बताया गया है कि इस विधेयक को तेल के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं और ऐसे ही अन्य विरोध प्रदर्शनों के मद्देनज़र लाया गया है, जिनमें सड़क मार्ग अवरुद्ध कर दिया गया या कार्यकर्ताओं ने स्वयं को चेन से जकड़ लिया और व्यवधान पैदा किया.
यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि इस क़ानून के तहत मानवाधिकारों और पर्यावरण के मुद्दों पर विरोध प्रदर्शन करने वालों कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया है जोकि विशेष रूप से चिन्ताजनक है.
वोल्कर टर्क ने कहा कि एक ऐसे समय, जब दुनिया को जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता और प्रदूषण के तिहरे संकट का सामना करना पड़ रहा है, सरकारों को अस्तित्व सम्बन्धी ऐसे विषयों पर शान्तिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार की रक्षा और उसकी अनुमति देनी चाहिए, ना कि उस पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए.
पुलिस अधिकारों में ‘अनावश्यक’ विस्तार
मानवाधिकार उच्चायुक्त के अनुसार, हिंसक प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध कार्रवाई के लिए ब्रिटेन की पुलिस के पास अधिकार मौजूद हैं, और इसके मद्देनज़र ये नया क़ानून “पूरी तरह से अनावश्यक” था. उन्होंने इस नए क़ानून में शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों का अपराधीकरण करने की भी आलोचना की है.
इस सार्वजनिक व्यवस्था अधिनियम में “गम्भीर व्यवधान रोकथाम आदेश” को पेश किया गया है, जिसका मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के अनुसार, प्रदर्शनकारियों की स्वतंत्रता को काफ़ी हद तक सीमित रखने के लिए किया जा सकता है.
इसके ज़रिये, अदालतों द्वारा लोगों की कुछ निश्चित स्थानों पर उपस्थिति पर पाबन्दी लगाने, कुछ ख़ास लोगों के साथ एकत्र होने और उनके इंटरनेट का प्रयोग करने उपयोग को सीमित की जा सकती है.
नए क़ानून के आधार पर, आम नागरिकों की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी की जा सकती है, भले ही उन्हें पहले कभी भी किसी अपराध का दोषी नहीं पाया हो.
अधिकारों पर प्रहार
वोल्कर टर्क ने ध्यान दिलाया कि सरकारों द्वारा “गम्भीर और लगातार हो रहे व्यवधानों से जनता की रक्षा सुनिश्चित की जानी ज़रूरी है, मगर साथ ही, शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों की भी अनुमति दी जानी होगी.
यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने चेतावनी देते हुए कहा कि यह अफ़सोसजनक है कि ब्रिटेन में नए क़ानून से उसके मानवाधिकार दायित्वों को ठेस पहुँची है, जिसमें देश ने अन्तरराष्ट्रीय मंच पर लम्बे समय से अग्रणी भूमिका निभाई है.