UNICEF: बाल विवाह समाप्ति की दिशा में हुई अल्प प्रगति ‘बहुसंकटों’ से ख़तरे में


Is an End to Child Marriage within Reach? Latest trends and future prospects नामक इस नवीनतम विश्लेषण के अनुसार, वर्तमान में, 20 से 24 वर्ष की आयुवर्ग की पाँच युवा महिलाओं में से एक की शादी, बचपन में हो गई थी, जबकि एक दशक पहले यह आँकड़ा, चार में से लगभग एक महिला का था.

कुचल गए सपने

यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल ने कहाहै, “दुनिया संकटों से घिरी हुई है, जिससे कमज़ोर तबक़े के बच्चों की उम्मीदें और सपने कुचले जा रहे हैं, विशेषकर लड़कियों के, जिन्हें दुल्हन नहीं, छात्राएँ बनना चाहिए.”

“स्वास्थ्य एवं आर्थिक संकट, सशस्त्र संघर्षों में वृद्धि, और जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव के कारण परिवार, बाल विवाह में झूठी तसल्ली पाने को मजबूर हैं. हमें अपने सामर्थ्य अनुसार यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि शिक्षा और सशक्त जीवन जीने के लिए, उनके अधिकार सुरक्षित हों.”

तत्काल परिणाम

यूनीसेफ़ के अनुसार, बचपन में शादी होने पर लड़कियों को तात्कालिक एवं आजीवन परिणाम भुगतने पड़ते हैं.

उनके स्कूल में रहकर शिक्षा जारी रखने की सम्भावना कम रहती है, और जल्दी गर्भवती होने का जोखिम रहता है, जिससे बच्चे व मातृ स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिलताओं तथा मृत्यु दर का ख़तरा बढ़ जाता है.

इस प्रथा से, लड़कियाँ अपने परिवार व दोस्तों से अलग हो सकती है, और अपने समुदायों में भाग लेने से वंचित हो सकती हैं, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण पर भारी असर पड़ सकता है.

इस रिपोर्ट में, वैश्विक प्रगति का हवाला दिया गया है, जो मुख्य रूप से भारत में आई गिरावट से प्रेरित है. हालाँकि अब भी बाल वधुओं की सबसे बड़ी संख्या भारत में है.

विश्लेषण के अनुसार, प्रगति अन्य सन्दर्भों में भी स्पष्ट है, जैसेकि बांग्लादेश और इथियोपिया जैसे अधिक आबादी वाले देश, जहाँ यह प्रथा ऐतिहासिक रूप से आम रही है. साथ ही छोटे देशों में, जहाँ बाल विवाह न्यूनतम स्तर पर आकर, अब उन्मूलन के क़रीब पहुँच रहा है, जैसे कि मालदीव और रवांडा.

यूनीसेफ़ ने बताया कि इन देशों से प्राप्त अनुभवों से स्पष्ट होता है कि भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भी प्रगति सम्भव है.

फिर भी, इन सभी देशों में, आर्थिक विकास में सुधार, ग़रीबी में कमी, रोज़गार तक पहुँच और माध्यमिक विद्यालय स्तर पर शिक्षा प्राप्ति जैसे साझा कारक शामिल हैं.

मोज़ाम्बिक के नामपुला प्रांत में बच्चे, बाल विवाह के नकारात्मक प्रभाव पर एक भित्ति चित्र बना रहे हैं.

ख़तरे में वृद्धि

दुनिया भर में, संघर्ष, जलवायु सम्बन्धी आपदाएँ, और कोविड-19 जारी रहने से – ख़ासतौर पर बढ़ती निर्धनता, आमदनी में झटकों, और स्कूल छोड़ने जैसे प्रभावों से, बाल विवाह के कारकों में वृद्धि हो रही है.जबकि बाल विवाह से बचने के लिए ज़रूरी स्वास्थ्य देखभाल शिक्षा, सामाजिक सेवाओं एवं सामुदायिक समर्थन तक लड़कियों की पहुँच भी मुश्किल होती जा रही है.

विश्लेषण में कहा गया है कि नतीजतन, वैश्विक स्तर पर संवेदनशील इलाक़ों में रहने वाली लड़कियों के बाल वधू बनने की सम्भावना, औसत इलाक़ों की लड़की की तुलना में दोगुनी होती है.

संघर्ष से सम्बन्धित मौतों में हर दस गुना वृद्धि पर, बाल विवाह की संख्या में सात प्रतिशत की वृद्धि होती है. साथ ही, जलवायु परिवर्तन से प्रेरित चरम मौसम की घटनाओं से भी लड़कियों को इसका शिकार होने का जोखिम बढ़ जाता है. 

विश्लेषण में चेतावनी दी गई है कि पिछले एक दशक में बाल विवाह को समाप्त करने की दिशा में हुए बहुमूल्य लाभ भी, कोविड-19 के प्रभावों से ख़तरे में हैं. यह अनुमान लगाया गया है कि महामारी ने, 2020 में रोकथाम योग्य बाल विवाहों की संख्या में 25 फ़ीसदी की कटौती कर दी है.

यूनीसेफ़ प्रमुख कैथरीन रसैल का कहना है, “हमने साबित कर दिया है कि बाल विवाह को समाप्त करने में प्रगति सम्भव है. इसके लिए कमज़ोर तबक़े की लड़कियों व परिवारों को अटूट समर्थन दिए जाने की आवश्यकता है. हमें लड़कियों को स्कूल में रहकर शिक्षा जारी रखने और यह सुनिश्चित करने पर ध्यान देना चाहिए कि उन्हें आर्थिक अवसर प्राप्त हो सकें.”



From संयुक्त राष्ट्र समाचार

Anshu Sharma

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