रविवार को बांग्लादेश और म्याँमार के कुछ हिस्सों से गुज़रा चक्रवात तूफ़ान मोका, अपने पीछे विनाश के कई निशान छोड़ गया. इससे कमज़ोर तबक़े के लाखों बच्चों और परिवारों के जीवन में गम्भीर व्यवधान पैदा हो गया है, जिनमें से अनेक, पहले से ही गम्भीर परिस्थितियों में जीवन-यापन कर रहे थे.
हालाँकि तूफ़ान का सबसे भयावह चरण बीत चुका है, लेकिन अभी भी भूस्खलन का जोखिम बरक़रार है, और आने वाले दिनों में जलजनित बीमारियों सहित, कई अन्य समस्याएँ बढ़ने की सम्भावना है.
सम्वेदनशील समुदायों पर असर
चक्रवात मोका ने 14 मई को स्थानीय समयानुसार दोपहर लगभग तीन बजे बांग्लादेश और म्याँमार के तट पर दस्तक दी, जिसके परिणामस्वरूप भारी वर्षा के साथ तूफ़ान आया और 175 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से तेज़ हवाएँ चलीं.
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक, कैथरीन रसेल ने कहा, “एक बार फिर, दुनिया के सबसे सम्वेदनशील बच्चे और परिवार, उस संकट का दंश झेल रहे हैं, जिसके लिए वो ज़िम्मेदार नहीं हैं. तूफ़ान से सबसे ज़्यादा वो क्षेत्र प्रभावित हुए हैं, जहाँ पहले से ही संघर्ष, ग़रीबी, अस्थिरता एवं जलवायु और पर्यावरणीय झटकों से गुजर रहे समुदायों के घर हैं. जैसे-जैसे हम चक्रवात के पश्चात, बच्चों की तत्काल ज़रूरतों का तत्काल आकलन व जवाबी कार्रवाई कर रहे हैं, हमें यह निश्चित तौर पर समझ आ रहा है कि बच्चों व उनके परिवारों के जीवन बचाने और सुधारने का सबसे अच्छा तरीक़ा, दीर्घकालिक समाधान खोजना है.”
रविवार देर रात तक, तूफ़ान कमज़ोर हो गया था, लेकिन अपने पीछे, तहस-नहस हुए घरों, स्वास्थ्य सुविधाओं, स्कूलों और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे छोड़ गया. लाखों प्रभावित लोगों में से कई शरणार्थी या आंतरिक रूप से विस्थापित लोग (आईडीपी) हैं, जो शिविरों और दुर्गम क्षेत्रों में कमज़ोर संरचना वाले आश्रयों में रहते हैं. वो अधिकतर, भोजन, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा के लिए, मानवीय सहायता पर निर्भर हैं.
म्याँमार में स्थिति चिन्ताजनक
म्याँमार में स्थिति विशेष रूप से चिन्ताजनक है. राख़ीन राज्य में रोहिंज्या, स्थानीय राख़ीन व अन्य समुदायों के 12 लाख आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों सहित, 1 करोड़ 60 लाख से अधिक लोग, चक्रवात के रास्ते में थे – जिनमें से 56 लाख बच्चे हैं. इसके अलावा, उत्तर-पश्चिम के चिन राज्य और सगाइंग व मैगवे क्षेत्र भी तूफ़ान से प्रभावित हुए हैं. यह सभी निचले इलाक़े हैं, जहाँ बाढ़ व भूस्खलन की आशंका रहती है.
परिवहन, दूरसंचार सेवाओं के बाधित होने और गिरे हुए पेड़ों व मलबे की वजह से कुछ सड़कों तक पहुँचना मुश्किल हो गया है, जिससे म्याँमार में नुक़सान के स्तर का आकलन करना चुनौतीपूर्ण हो रहा है. हालाँकि, शुरुआती रिपोर्टों में तूफ़ान से कई बच्चों के पीड़ित होने की ख़बरें आई हैं.
रोहिंज्या शरणार्थियों की मुश्किलें
दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी शिविर, बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में, दस लाख रोहिंज्या शरणार्थियों को तूफ़ान का कहर झेलना पड़ा, जिनमें लगभग आधे बच्चे थे. यह शरणार्थी शिविर, दुनिया के सबसे तंग स्थानों में से एक हैं, जहाँ बच्चे बीमारी, कुपोषण, उपेक्षा, शोषण और हिंसा जैसी परिस्थितियों के प्रति सम्वेदनशील रहते हैं. बच्चे नाज़ुक अस्थाई आश्रयों में रहते हैं, जहाँ मिट्टी धंसने का भी ख़तरा होता है.
2019 के उष्णकटिबंधीय चक्रवाती तूफ़ान ‘फ़नी’ की ही तरह, तूफ़ान ‘मोका’ भी, उत्तर हिंद महासागर में अब तक दर्ज़ किया गया सबसे शक्तिशाली तूफ़ान माना गया है. वैज्ञानिकों के अनुसार, हाल के वर्षों में आपदा प्रबंधन के प्रयासों से, चक्रवातों के दौरान होने वाली मौतों की संख्या में कमी आई है, लेकिन जलवायु परिवर्तन इस प्रगति को ख़तरे में डाल रहा है. उन्होंने कहा कि आने वाले दशकों में, बारम्बार आते तीव्र तूफ़ानों से, बांग्लादेश के लिए अधिक ख़तरा पैदा हो सकता है.
हालाँकि जिस तरह की आशंका पहले जताई जा रही थी, चक्रवाती तूफ़ान मोका का ज़मीन से टकराव, कॉक्सेस बाज़ार के विशाल शरणार्थी शिविर पर नही हुआ. इसके बावजूद वहाँ भीषण हवाओं व बारिश से, हज़ारों लोग प्रभावित हुए हैं और शरणार्थियों के लिए बनाए गए सैकड़ों अस्थाई आश्रय, सुविधाएँ, और बुनियादी ढाँचे तहस-नहस हो गए हैं.
राहत कार्यों के लिए, दोनों देशों के प्रभावित इलाक़ों में, समय पर, तात्कालिक मानवीय पहुँच महत्वपूर्ण है. यूनीसेफ़ वहाँ ज़मीनी कार्रवाई में जुटा है व ज़रूरतों का आकलन एवं आपातकालीन राहत प्रदान कर रहा है. साथ ही यूनीसेफ़, बांग्लादेश और म्याँमार में स्थानीय भागीदारों के साथ मिलकर, पानी व स्वच्छता, बाल संरक्षण, स्वास्थ्य, पोषण एवं शिक्षा समेत समस्त आपूर्ति सेवाएँ पहुँचा रहा है.