रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश, पूर्ण मिलीभगत, मौजूदा प्रतिबन्धों को लागू करने में ढिलाई बरतकर और आसानी से नज़रअन्दाज़ कर दिए गए प्रतिबन्धों के ज़रिए, इस व्यापार को आसान बना रहे हैं.
टॉम एंड्रयूज ने कहा, “म्याँमार के लोगों पर सेना के अत्याचारों के तमाम प्रमाणों के बावजूद, सैन्य जनरलों को, अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों, लड़ाकू विमानों के लिए कलपुर्ज़ों, देश में ही शस्त्र निर्माण में काम आने वाले कच्चे माल और अन्य उपकरणों तक पहुँच हासिल रही है.”
“ये हथियार उपलब्ध कराने वाले पक्ष, छदम कम्पनियों का प्रयोग करके और प्रतिबन्धों के ढीले क्रियान्वयन पर भरोसा करके, उनकी अनदेखी करने में समर्थ रहे हैं.”
विशेष रैपोर्टेयर टॉम एंड्रयूज़ ने कहा, “अच्छी ख़बर ये है कि अब हम जानते हैं कि इन हथियारों की आपूर्ति कौन पक्ष कर रहे हैं और वो किस क्षेत्र में सक्रिय हैं. सदस्य देशों को अब इन हथियारों की आपूर्ति को रोकने के लिए कार्रवाई तेज़ करनी होगी.”
प्रतिबन्धों का महत्व
विशेष दूत टॉम एंड्रयूज़ ने सदस्य देशों से, म्याँमार सेना को हथियारों की बिक्री या हस्तान्तरण पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने का आहवान करते हुए, शस्त्र व्यापारियों और विदेशी मुद्रा स्रोतों पर प्रतिबन्धों के समन्वय में, मौजूदा पाबन्दियों को सख़्ती से लागू करने की पुकार लगाई.
विशेष रैपोर्टेयर टॉम एंड्रयूज़ की इस रिपोर्ट का नाम है – अरब डॉलर मृत्यु सौदा: अन्तरराष्ट्रीय शस्त्र नैटवर्क, जो म्याँमार में मानवाधिकार हनन को आसान बनाते हैं – “The Billion Dollar Death Trade: International Arms Networks that Enable Human Rights Violations in Myanmar”
इस व्यापक शोध पत्र में सैन्य तख़्तापलट के बाद से, सेना को हथियारों के हस्तान्तरण पर अब तक की सबसे विस्तृत जानकारी जुटाई गई है. इस रिपोर्ट में, अनेक तरह के आँकड़ों के साथ, हथियारों के लेन-देन में शामिल प्रमुख नेटवर्कों और कम्पनियों की जानकारी दी गई हैं. साथ ही ये रिपोर्ट में ये दिखाया गया है कि ये नैटवर्क किन क्षेत्रों में सक्रिय हैं जिनमें रूस, चीन, सिंगापुर, थाईलैंड व भारत के नाम प्रमुख हैं.
विशेष रैपोर्टेयर टॉम एंड्रयूज़ न कहा, “म्याँमार सेना को हथियारों की अधिकतर आपूर्ति रूस और चीन से की जाती है जोकि, सैन्य तख़्तापलट के बाद से रूस से 40 करोड़ डॉलर और चीन से 26 करोड़ डॉलर से अधिक मूल्य की शस्त्र आपूर्ति रही है. इनमें अधिकतर व्यापार, सरकारी स्वामित्व वाली संस्थाओं से हुआ है.”
“हालाँकि, सिंगापुर से बाहर सक्रिय हथियार व्यापारी, म्याँमार सेना के घातक हथियारों की फ़ैक्टरियों के निरन्तर संचालन के लिए, बहुत अहम हैं. इन कारख़ानों को आमतौर पर KaPaSa के नाम से जाना जाता है.
सिंगापुर कड़ी
रिपोर्ट में बताया गया है कि फ़रवरी 2021 से दिसम्बर 2022 के बीच, सिंगापुर की दर्जनों संस्थाओं से म्याँमार की सेना के लिए 25 करोड़ 40 लाख अमेरिकी डॉलर के मूल्य बराबर की सामग्रियों की आपूर्ति की गई है. हथियार विक्रेताओं ने, बड़े पैमाने पर सिंगापुर के बैंकों का इस्तेमाल किया है.
विशेष रैपोर्टेयर ने कहा, “मैं सिंगापुर के नेताओं से इस रिपोर्ट में दिखाई गई सूचना व जानकारी संज्ञान लें और इसकी नीतियों को यथासम्भव विस्तार और कड़ाई के साथ लागू करें.”
उन्होंने कहा, “अगर सिंगापुर सरकार, म्याँमार सेना को हथियारों व सम्बन्धित सामग्रियों की आपूर्ति को अपने ही क्षेत्र में रोक दे तो, सैन्य नेतृत्व (जुंटा) की युद्धापराधों को अंजाम देने की सामर्थ्य ख़ासी बाधित हो सकती है.”
रिपोर्ट में दी गई जानकारी के अनुसार, तख़्तापलट के बाद से, थाईलैंड स्थित कम्पनियों की तरफ़ से, म्याँमार सेना को 2.8 करोड़ अमेरिकी डॉलर के हथियार भेजे गए हैं. भारत स्थित संस्थाओं ने फ़रवरी 2021 के बाद से, म्याँमार की सेना को 5.1 करोड़ डॉलर मूल्य के हथियार और सम्बन्धित सामग्री की आपूर्ति की है.
रिपोर्ट में ये आकलन भी किया गया है हथियारों की बिक्री और हस्तान्तरण में सक्रिय नैटवर्कों पर लगे अन्तरराष्ट्रीय प्रतिबन्ध, म्याँमार की सेना को हथियारों की आपूर्ति रोकने या उसे धीमा करने में क्यों नाकाम रहे हैं.
“म्याँमार सेना और उसके शस्त्र आपूर्तिकर्ताओं ने व्यवस्था को चकमा देने का रास्ता निकाल लिया है. ऐसा इसलिए क्योंकि वहाँ प्रतिबन्धों को सख़्ती से लागू नहीं किया जा रहा है. और क्योंकि जुंटा से सम्बद्ध हथियार डीलर, प्रतिबन्धों से बचने के लिए नक़ली कम्पनियाँ बनाने में कामयाब होते रहे हैं.”
टॉम एंड्रयूज का कहना है कि देशों की सरकारें, प्रतिबन्धों का दायरा बढ़ाकर और ख़ामियों को दूर करके, जुंटा से जुड़े हथियारों के डीलरों को नाकाम कर सकती हैं.
रिपोर्ट में, विदेशी मुद्रा के उन मुख्य स्रोतों पर भी ध्यान दिया गया है जिनकी वजह से, तख़्तापलट के बाद से म्याँमार में जुंटा को एक अरब डॉलर से अधिक की रक़म के हथियार ख़रीदने के क़ाबिल बनाया है.
“सदस्य देशों ने विदेशी मुद्रा के उन प्रमुख स्रोतों को ठीक तरह से लक्षित नहीं किया है जिस पर जुंटा, हथियार ख़रीदने के लिए निर्भर है, जिनमें म्याँमार तेल व गैस कम्पनी सबसे प्रमुख है.”
