एल रंजीता और उनके भाई एल मुगिलन, भारत के चेन्नई राज्य के तमिलनाडु शहर में, अपनी माँ के साथ एक कमरे के मकान में रहते हैं. उनकी माँ को सक्रिय तपेदिक (टीबी) की बीमारी है, जो अनुपचारित रहने पर अत्यधिक संक्रामक होती है. लेकिन ये भाई-बहन बिल्कुल स्वस्थ हैं और तपेदिक (टीबी) मुक्त हैं. वजह, उन्हें अपनी माँ की बीमारी का पता चलने के एक सप्ताह के भीतर ही, टीबी निवारक उपचार (टीपीटी) प्राप्त हुआ था. फिलहाल टीबी के लिए उनकी माँ का, छह महीने लम्बा इलाज चलेगा.
रंजीता बताती हैं, “अम्मा (माँ) ने दवा की एक भी ख़ुराक कभी नहीं छोड़ी. अब वह नियमित रूप से अपना भोजन करती हैं, उनकी निरन्तर उठती खाँसी बन्द हो गई है, और वज़न भी बढ़ रहा है. उन्होंने दोबारा अपना कामकाज भी शुरू कर दिया है.”
रंजीता को चेन्नई के कोडुंगैयूर नगरीय प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र (यूपीएचसी) में टीबी निवारक उपचार यानि टीपीटी प्रदान किया गया था. चूँकि उनकी माँ चेन्नई में कामकाजी महिलाओं के छात्रावास में हाउसकीपर के रूप में काम करती हैं, इसलिए उनके कार्यस्थल पर उनके निकट सम्पर्क में रहे लोगों की भी, टीबी की जाँच की गई.

चेन्नई टीबी मुक्त परियोजना का नेतृत्व कर रहीं, वृहद चेन्नई निगम की ज़िला टीबी अधिकारी, डॉक्टर लावण्या जे ने बताया, “टीबी रोगियों के निकट सम्पर्क में आए सभी लोगों, कमज़ोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्तियों और अन्य लोगों को, सक्रिय बीमारी का कारण बनने से पहले ही, टीबी बैक्टीरिया को शरीर से ख़त्म करके, संक्रमण के जोखिम से बचाने के लिए, टीबी निवारक उपचार दिया जाता है.
संक्रमण के सम्पर्क में आने वाले लोगों को ये उपचार देने के लिए, सावधानी से सभी नए रोगियों क पता लगाया जाता है. हर माह मरीज़ों को बुलाकर यह सुनिश्चित किया जाता है कि सभी मरीज़, इलाज पूरा करें और रोग मुक्त हो जाएँ.” चेन्नई टीबी मुक्त परियोजना के तहत, वृहद चेन्नई क्षेत्र में सभी 140 यूपीएचसी में व्यापक टीबी सेवाएँ मुफ़्त प्रदान की जाती हैं.
सचल चिकित्सा केन्द्र
चेन्नई टीबी मुफ़्त परियोजना, समुदाय के संरक्षण और टीबी को ख़त्म करने के लिए सक्रिय मामलों का पता लगाकर, जाँच, निदान, उपचार व देखभाल हेतु सामुदायिक पहुँच पहल का हिस्सा है. भारत के बाक़ी हिस्सों की तरह, चेन्नई के सरकारी और निजी और एनजीओ स्वास्थ्य सुविधाओं में भी, टीबी से सम्बन्धित सेवाएँ निशुल्क प्रदान की जाती हैं.

टीबी उन्मूलन का एक महत्वपूर्ण पहलू है – सीने का ऐक्स-रे, जो समुदाय के बीच सचल जाँच इकाई (एमडीयू) के ज़रिए, सक्रिय मामलों का पता लगाया जाता है.देश में अपनी तरह की इस पहली पहल के अन्तर्गत, सात यात्री वाहनों में डिजिटल ऐक्स-रे मशीनें लगाई गई हैं. इन वाहनों में एक रेडियोग्राफ़र व एक ड्राइवर होते हैं और इन्हें झोंपड़-पट्टियों, कार्यस्थलों, वृद्धाश्रमों आदि में ले जाया जाता है, ताकि लोगों के लिए सीने का ऐक्स-रे करवाना आसान हो सके. इसकी शुरूआत अप्रैल 2018 में की गई थी, ताकि संवेदनशील आबादी को उनके दरवाज़े पर ही जाँच सुविधा मिल सके.
WHO की भूमिका
भारत में WHO का टीबी तकनीकी समर्थन नैटवर्क, भारत सरकार को तकनीकी प्रोटोकॉल, प्रशिक्षण सामग्री, डेटा संग्रह सॉफ़्टवेयर, पर्यवेक्षण निगरानी, फ़ील्ड नियोजन और प्रशिक्षण के विकास के लिए तकनीकी-प्रबन्धकीय सहायता प्रदान करता है.
साथ ही, रोग के बारे में उप-राष्ट्रीय अनुमानित आँकड़े व 201 ज़िलों और 10 राज्य/संघ क्षेत्रों के दावों के लिए, टीबी मुक्त प्रमाणन सुविधा मुहैया करता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन )WHO) के भारत कार्यालय ने, एक नया टीपीटी जानकारी केन्द्र बनाए जाने का भी समर्थन किया है,जिससे पंजीकृत स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र स्तर और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं सहित सभी स्तरों पर, टीपीटी देखभाल की निगरानी के लिए कार्यक्रम प्रबन्धकों और कर्मचारियों के लिए अनुपालन, प्रतिकूल घटना और दवा वितरण को दर्ज करने में मदद मिल सके.
भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि, डॉक्टर रोड्रिको एच ऑफ़्रिन ने कहा, “भारत ने 2025 तक देश भर में टीबी को समाप्त करने के लिए उच्च-स्तरीय प्रतिबद्धता और निवेश किया है. उन्मूलन के लिए प्रगति में तेज़ी लाने के लिए, दक्षिणी प्रदेश तमिलनाडु में प्रारम्भिक टीबी पहचान, उपचार और देखभाल के लिए सार्वभौमिक पहुँच और रोग से प्रभावित या जोखिम वाले व्यक्तियों के लिए निवारक उपचार प्राप्त करने की दिशा में अभिनव और एकीकृत कार्रवाई तेज़ कर दी गई है. राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने अपनी मज़बूत स्वास्थ्य प्रणाली का लाभ उठाया है और निदान एवं देखभाल के लिए नए उपकरणों व दृष्टिकोणों का उपयोग किया है.”

पहल का असर
यह पहल समुदाय के लिए बहुत फायदेमन्द साबित हुई. जो लोग काम के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं और सरकारी अस्पतालों तक नहीं जा सकते थे, उनका अपने घरों या कार्यस्थलों के पास ही ऐक्स-रे करवाना सम्भव हुआ. डॉक्टर लावण्या ने बताया, “2019 में, हमने ऐक्स-रे विश्लेषण के लिए एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) का उपयोग करना शुरू किया, जिससे अतीत में परिणाम तैयार होने में लगने वाले चार दिनों की तुलना में, अब परिणाम एक दिन के भीतर ही तैयार हो जाते हैं.”
आर थिरू स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सा अधिकारी, डॉक्टर दीपक ने बताया, “सचल वाहन सामुदायिक पहुँच पहल, लक्षणों और उपलब्ध सेवाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ, डिजिटल ऐक्स-रे सेवाएँ भी प्रदान करती हैं, इससे लोगों का विश्वास बढ़ा है और रोगियों की नियमित जाँच व उपचार के लिए आने व उपचार का पालन करने में वृद्धि होने में मदद मिली है.”
टीबी की रोकथाम के लिए क़दम

टीबी, एक ऐसी संक्रामक बीमारी है जो फेफड़ों को प्रभावित करती है, लेकिन यह पूर्णत: रोकथाम व इलाज योग्य है. टीबी उन्मूलन के लिए भारत की राष्ट्रीय सामरिक योजना का लक्ष्य, बहु-आयामी दृष्टिकोण का उपयोग करके, 2025 तक टीबी को समाप्त करना है, यानि वैश्विक लक्ष्य से पाँच साल पहले.
इसमें टीबी के सक्रिय मामलों की खोज शामिल है, विशेष रूप से उच्च जोखिम वाली आबादी और निजी चिकित्सा के लिए जाने वाले रोगियों के बीच.
भारत सरकार की ‘आयुष्मान भारत’ योजना, स्वास्थ्य और कल्याण केन्द्रों के साथ एकीकरण के ज़रिए, समुदाय के क़रीब विकेन्द्रीकृत जाँच एवं उपचार सेवाओं के प्रावधान से, आठ वर्षों के भीतर राष्ट्रीय स्तर पर टीबी रोगी पंजीकरण में 56 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, 2014 में 15.5 लाख से बढ़कर 2022 में 24.22 लाख.
भारत सरकार ने हाल ही में टीबी रोगियों के उपचार के परिणामों में सुधार के लिए रोगियों और उनके परिवारों को सामुदायिक सहायता प्रदान करने के लिए निक्षय मित्र पहल भी शुरू की है, जिससे उन्हें निक्षय पोषण योजना के माध्यम से, पोषण सम्बन्धी सहायता भी प्रदान की जा रही है.